Book Title: Bhaktamar Katha Author(s): Udaylal Kasliwal Publisher: Jain Sahitya Prasarak karyalay View full book textPage 9
________________ (८) बना सबकी सहायतासे ठीक करके यह यंत्र-मंत्रोंका संग्रह किया है। हमें विश्वास है कि तब भी बहुतसी अशुद्धियाँ रह जाना संभव है, उन्हें पाठक किसी पुरानी प्रतिसे शुद्ध करनेका यत्न करें। ___हम उन सजनोंके अत्यन्त उपकृत हैं जिन्होंने हमारी प्रार्थना पर ध्यान देकर यंत्र-मंत्रकी पुस्तकें भेजनेकी उदारता दिखाई है। संस्कृत-कथाओंका रूपान्तर हमने अपनी पद्धति पर ही क्रिया है । आवश्यकतानुसार कथाओंमें कुछ अंश मिलाया है । रूपान्तर शब्दार्थकी प्रधानतासे नहीं, पर भावकी प्रधानता लेकर किया गया है। अन्तमें झालरापाटन निवासी नवरत्न श्रीयुक्त पं० गिरिधर शर्माके हम अत्यन्त कृतज्ञ हैं कि उन्होंने मूल भक्तामर पर लिखी हुई अपनी 'हिन्दीभक्तामर' नामक सरस सुन्दर कविताके प्रकाशित करनेकी हमें आज्ञा देकर कृतार्थ किया । गच्छतः स्खलन कापि भवत्येव प्रमादतः। हसन्ति दुर्जनास्तत्र समादधति सजनाः ॥ विनीत-- .. उदयलाल काशलीवाल।Page Navigation
1 ... 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 ... 194