Book Title: Bhaktamar Katha
Author(s): Udaylal Kasliwal
Publisher: Jain Sahitya Prasarak karyalay

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Page 10
________________ श्रीपरमात्मने नमः । भक्तामर - कथा । मंगल और कथावतार । श्रीवर्द्धमानं प्रणिपत्य मूर्ध्ना दोषैर्व्यपेतं ह्यविरुद्ध-वाचम् । 'तद्वृषभस्तवस्य सुरीश्वरैर्यत्कथितं क्रमेण ॥ १ ॥ वक्ष्ये फलं क्षुधा, तृषा, रोग, शोक, भय, चिन्ता, राग, द्वेष, मोहआदि दोषोंसे रहित और जिनके वचनोंमें परस्पर विरोध नहीं है, उन श्रीवर्धमान तीर्थंकरको नमस्कार कर भगवान् ऋषभदेवकी स्तुतिरूप भक्तामरस्तोत्रका फल कहा जाता है, जैसा कि उसे पूर्वके ऋषि-महात्माओंने कहा है । 1 भारतवर्ष में मालवा प्रान्त प्राचीन कालसे प्रसिद्ध है । उसमें धारा नामकी एक सुन्दर नगरी है । वह सुन्दर सुन्दर महलोंसे युक्त है उन महलों परकी फड़कती हुई ध्वजाएँ बड़ी शोभा देती हैं । वहाँ लोगोंके मुहमें सरस्वतीका निवास है - वे अच्छे विद्वान् हैं । जब चन्द्रमा नगरीके ऊपर आता है तब उसका हरिण चन्द्र-मुखियों द्वारा गाये गये मनोहर गीतोंको सुनने के लिए वहीं ठहर जाता है । कलंक - रहित चन्द्रमा तब बहुत सुन्दर दीखने लगता है । 1 धारा नगरीके राजा भोज संसारमें बहुत प्रसिद्ध हैं । उन्होंने दानमानादिसे सारी पृथ्वीको सन्तुष्ट कर लिया है। इसलिए उनका कोई दुश्मन

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