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विषयांक. विषय. ६४ हमेरा पार न कोउ पाता
अब हम उतरगए भवपारा भये हम आतम मस्त दिवाना आतम सबसे हिलमिल चलना आतम आतमकुं खुश करना आतम परकुं क्या समजाना हमकुं ऐसी निद्रा आइ आतम साक्षी होकर रहेना सबका धर्म है न्यारा न्यारा आतम आपोआप प्रकाशी हमेरा आतमरूप है जाना माया वस्त्र खरी पडद्यु अवधूत नाम न रूप हमेरा गुणानुरागी थाशोरे अब हम पढ पढ गुणकर थाके सर्वनयोनी सापेक्षदृष्टिए सर्व सत्य समजाय के आतम आप स्वभावमें रमना आतम अपना देशमें जाना हमारो कोइ न लेजो केडो अमारो पार न को जन पामे अमारी पाछळ कोइ न लागो आतम नाम अनेक विचारो हमारो संग न कोइ करशो आतम मनइन्द्रिय वश करना
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