Book Title: Bhagavana Mahavira
Author(s): Jain Parishad Publishing House Delhi
Publisher: Jain Parishad Publishing House Delhi

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Page 9
________________ भूमिका भगवान महावीर तपःप्रधान संस्कृति के उज्ज्वल प्रतीक हैं। भोगों से भरे हुए इस संसार में एक ऐसी स्थिति भी सम्भव है जिसमे मनुष्य का अडिग मन निरन्तर संयम और प्रकाश के सानिध्य मे रहता हो-इस सत्य की विश्वसनीय प्रयोगशाला भगवान महावीर का जीवन है। वर्धमान महावीर गौतम बद्ध की भांति नितांत ऐतिहासिक व्यक्ति है। माता पिता के द्वारा उन्हे भी हाड मांस का शरीर प्राप्त हुआ था । अन्य सानवों की भांति वे भी कच्चा दूध पीकर बढ़े थे, किन्तु उनका उदात्त मन अलौकिक था। तम और ज्योति, सत्य और अनत के संघर्ष मे एक बार जो मार्ग उन्होंने स्वीकार किया, उस पर दृढ़ता से पैर रख कर हम उन्हे निरन्तर आगे बढ़ते हुए देखते हैं। उन्होंने अपने मन को अखंड ब्रह्मचर्य की आच मे जैसा तपाया था उसकी तुलना मे रखने के लिये अन्य उदाहरण कम ही मिलेगे। जिस अध्यात्म केन्द्र में इस प्रकार की सिद्धि प्राप्त की जाती है उसकी धाराएं देश और काल मे अपना निस्सीम प्रभाव डालती हैं। महावीर का वह प्रभाव आज भी अमर है। अध्यात्म के क्षेत्र में मनुष्य कैसा साम्राज्य निर्मित कर सकता है, उस मार्ग मे कितनी दूर तक वह अपनी जन्मसिद्धि महिमा का अधिकारी वन सकता है, इसका ज्ञान हमें महावीर के जीवन से प्राप्त होता है। बार-बार हमारा मन उनकी फौलादी दृढ़ता से प्रभावित होता है। कायोत्सर्ग मुद्रा मे खड़े रहकर शरीर के सुख दुखो से निरपेक्ष रहते हुए उन्होंने कार्य साधन के अत्यन्त उत्कृष्ट आदर्श को प्रत्यक्ष दिखाया था । निवल संकल्प का व्यक्ति उस आदर्श को मानवी पहुँच से वाहर भले ही समझ, पर उसकी सत्यता में कोई सन्देह नहीं हो सकता। तीर्थकर महावीर उस

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