Book Title: Bhagavana Mahavira
Author(s): Jain Parishad Publishing House Delhi
Publisher: Jain Parishad Publishing House Delhi

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Page 10
________________ ( 2 ) सत्यात्मक परिधि के केन्द्र मे अखंड प्रज्वलित दीप की भाति हमारे सामने आते हैं। यद्यपि यह पथ अत्यन्त कठिन था, किन्तु हम उनके कृतज्ञ हैं कि उस मार्ग पर जब वे एक वार चले तो न तो उनके पैर रुके और न डगमगाए । उन्होंने अन्त तक उसका निर्वाह किया । त्याग और तप के जीवन को रसमय शब्दों में प्रस्तुत करना कठिन है, किन्तु फिर भी इस सुन्दर जीवन में कितने ही मार्मिक स्थल हैं, और कितनी ही ऐसी रेखाएं हैं जो उनके मानवीय रूप को साकार वनाती हैं। जैन अनुश्रुति और धार्मिक साहित्य के आधार पर महावीर के चरित्र को प्रस्तुत करने का यह प्रयास स्वागत के योग्य है । उस सुन्दर और सुरभित कमल की जितनी भी पंखड़ियाँ यहाँ आ सकी हैं उन्हे देखकर प्रसन्नता होती है । आशा है इस शतपत्र जीवन के सर्वांगपूर्ण वर्णन के और भी साहित्यिक प्रयोग होंगे। नई दिल्ली, वासुदेव शरण ६-५-५१

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