Book Title: Balbodh Pathmala 3
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 10
________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates मेरे मन में यह भाव जग रहें हैं कि - वह दिन कब आयेगा जब मैं हृदय में समता भाव धारण करके, बारह भावनाओं का चिंतवन करके तथा ममतारूपी भूत (पिशाच) को भगाकर वन में जाकर मुनि दीक्षा धारण करूँगा। वह दिन कब आयेगा जब मैं दिगम्बर वेश धारण करके अट्ठाईस मूलगुण धारण करूँगा, बाईस परीषहों पर विजय प्राप्त करूँगा और दश धर्मों को धारण करूँगा, सुख देने वाले बारह प्रकार के तप तपूँगा और पाश्रव और बंध भावों को त्याग नये कर्मों को रोककर संचित कर्मों की निर्जरा कर दूँगा ।।३।। वह धन्य घड़ी कब होगी जब मैं अपने में ही रम जाऊँगा। कर्ता-कर्म के भेद का भी प्रभाव करता हुआ राग-द्वेष दूर करूँगा और आत्मा को पवित्र बना लूँगा – जिससे प्रात्मा में क्षायिक चारित्र प्रकट करके अनंतदर्शन, अनंतज्ञान, अनंतसुख और अनंतवीर्य से युक्त हो जाऊँगा । आनंदकन्द जिनेन्द्रपद प्राप्त कर लूँगा। मेरा वह दिन कब आयेगा जब इस दुःखरूपी भवसागर को पार कर अमर पद प्राप्त करूँगा।।४।। उक्त स्तुति में देव-दर्शन से लेकर देव (भगवान् ) बनने तक की भावना ही नहीं आई है किन्तु भक्त से भगवान् बनने की पूरी प्रक्रिया ही प्रा गई है। प्रश्न १. उक्त स्तुति में कोई भी एक छंद जो तुम्हें रुचिकर हुआ हो, अर्थ सहित लिखिये एवं रुचिकर होने का कारण भी दीजिये। ७ Please inform us of any errors on rajesh@AtmaDharma.com

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