Book Title: Balbodh Pathmala 3
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 23
________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates पाठ पाँचवाँ सदाचार (भक्ष्याभक्ष्य विचार) सुबोध – क्यों भाई प्रबोध! कहाँ जा रहे हो ? चलो, आज तो चौराहे पर आलू की चाट खायेंगे। बहुत दिनों से नहीं खाई हैं। प्रबोध – चौराहे पर और आलू की चाट! हमें कोई भी चीज़ बाज़ार में नहीं खाना चाहिये और आलू की चाट भी कोइ खाने की चीज़ है ? याद नहीं, कल गुरुजी ने कहा था कि आलू तो अभक्ष्य है ? सुबोध – यह अभक्ष्य क्या होता है, मेरी तो समझ में नहीं आता। पाठशाला में पण्डितजी कहते हैं-यह नहीं खाना चाहिये, वह नहीं खाना चाहिए। औषधालय में वैदजी कहते हैं- यह नहीं खाना, वह नहीं खाना। अपने को तो कुछ पसंद नहीं। जो मन में आए सो खागो और मौज से रहो। प्रबोध - जो खाने योग्य सो भक्ष्य और जो खाने योग्य नहीं सो अभक्ष्य। यही तो कहते हैं कि अपनी आत्मा इतनी पवित्र बनायो कि उसमें अभक्ष्य २० Please inform us of any errors on rajesh@ AtmaDharma.com

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