Book Title: Balbodh Pathmala 3
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 35
________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates यह जिनवाणी की स्तुति है। इसमें दीपशिखा के समान प्रज्ञानांधकार को नाश करने वाली पवित्र जिनवाणी - रूपी गंगा को नमस्कार किया गया है। जिनवाणी अर्थात् जिनेन्द्र भगवान द्वारा दिया गया तत्त्वोपदेश, उनके द्वारा बताया गया मुक्ति का मार्ग । हे जिनवाणी-रूपी पवित्र गंगा ! तुम महावीर भगवानरूपी हिमालय पर्वत से प्रवाहित होकर गौतम गणधर के मुखरूपी कुण्ड में आई हो। तुम मोहरूपी महान् पर्वतों को भेदती हुई जगत् के अज्ञान और ताप ( दुःखों ) को दूर कर रही हो। सप्तभंगी रूप नयों की तरंगों से उल्लसित होती हुई ज्ञानरूपी समुद्र में मिल गई हो। ऐसी पवित्र जिनवाणी - रूपी गंगा को मैं अपनी बुद्धि और शक्ति अनुसार अञ्जलि में धारण करके शीश पर धारण करता हूँ । । १ । । इस संसाररूपी मंदिर में अज्ञानरूपी घोर अंधकार छाया हुआ है। यदि उस अज्ञानांधकार को नष्ट करने के लिए जिनवाणी रूप दीपशिखा नहीं होती तो फिर तत्त्वों का वास्तविक स्वरूप किस प्रकार जाना जाता ? वस्तु स्वरूप अविचारित ही रह जाता। अतः संत कवि कहते हैं कि जिनवाणी बड़ी ही उपकार करने वाली है, जिसकी कृपा से हम तत्त्व का सही स्वरूप समझ सके ।।२।। मैं उस जिनवाणी को बारंबार नमस्कार करता हूँ । प्रश्न - १. जिनवाणी स्तुति की कोई चार पंक्तियाँ अर्थ सहित लिखिये। ३२ Please inform us of any errors on rajesh@AtmaDharma.com

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