Book Title: Balbodh Pathmala 3
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 28
________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates न हो उसे अस्तित्व गुण कहते हैं। प्रत्येक द्रव्य में अस्तित्व गुण हैं, अतः प्रत्येक द्रव्य की सत्ता स्वयं से है, उसे किसी ने बनाया नहीं है और न उसे कोई मिटा ही सकता है क्योंकि वह अनादि अनंत है। इसी अस्तित्व गुण की अपेक्षा तो द्रव्य का लक्षण “सत्” किया जाता है, “सत् द्रव्यलक्षणम्" और सत् का कभी विनाश नहीं होता, तथा असत् का कभी उत्पाद् नहीं होता। मात्र पर्याय पलटती छात्र - और वस्तुत्व...? अध्यापक – जिस शक्ति के कारण द्रव्य में अर्थ क्रिया (प्रयोजनभूत क्रिया) हो उसे वस्तुत्व गुण कहते हैं। वस्तुत्व गुण की मुख्यता से ही द्रव्य को वस्तु कहते हैं। कोई भी वस्तु लोक में पर के प्रयोजन की नहीं हैं, पर प्रत्येक वस्तु अपने-अपने प्रयोजन से युक्त हैं, क्योंकि उसमें वस्तुत्व गुण छात्र - द्रव्यत्व गुण किसे कहते हैं ? प्रध्यापक – जिस शक्ति के कारण द्रव्य की अवस्था निरन्तर बदलती रहे उसे द्रव्यत्व गुण कहते हैं। द्रव्यत्व गुण की मुख्यता से वस्तु को द्रव्य कहते है। एक द्रव्य में परिवर्तन का कारण कोई दुसरा द्रव्य नहीं है क्योंकि उसमें द्रव्यत्व गुण है, अतः उसे परिणमन करने में पर की अपेक्षा नहीं है। छात्र - उन तीनों गुणों में अन्तर क्या हुआ ? अध्यापक – अस्तित्व गुण तो मात्र “है" यह बतलाता है, वस्तुत्व गुण “निरर्थक नहीं है" यह बताता है और द्रव्यत्व गुण “निरंतर परिणमनशील है" यह बताता है। २५ Please inform us of any errors on rajesh@AtmaDharma.com

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