Book Title: Bahubali tatha Badami Chalukya Author(s): Nagarajaiah Hampa, Pratibha Mudaliyar Publisher: Rashtriya Prakrit Adhyayan tatha Anusandhan Sanstha View full book textPage 4
________________ HERSNEHALO आशिर्वचन . अंतिम श्रुतकेवलि ने चंद्रगुप्त मौर्य तथा उनके 700 लोगों के साथ जब ई. पू. तीसरी सदी में श्रवणबेळगोळ में कदम रखा तभी यह स्थान पवित्र हुआ और तब से श्रवणबेळगोळ जैन मुनि तथा साध्वियों और जैन संस्कृति का प्रतीक बना हुआ है। विभिन्न पुरालेखों के आधार पर यह कहना उचित ही होगा कि श्रवणबेळगाळ जैन तथा भारतीय इतिहास का विशाल भंडार है। चामुंड रायं (ई.स. 981) द्वारा दोड्ड बेट्टा (जिसे विंध्यगिरी भी कहा जाता है) के शिखर पर गोमट की 58.8 फूट लंबी विशालकाय प्रतिमा की स्थापना की गई जिससे कर्नाटक में एक स्वर्णिम अध्याय ही जैसे खुल गया। छठी सदि के अंतिम दो ढाई दशकों में दक्षिण में बाहुबलि की शिल्पकला तथा कला का प्रारंभ करनेवालों में बादामी के चालुक्य . प्रथम थे। उसी प्रकार आदिनाथ, पार्श्वनाथ, महावीर, कुष्मांडिनीदेवि, ज्वालामालिनि देवि, पद्मावतिदेवि, धरणेन्द्र तथा श्याम आदि के शिल्पों का परिचय करानेवाले प्रथम शासक वे ही थे। उसी के साथ साथ गंग, राष्ट्रकुट, होयसळ तथा विजयनगर के शासक भी जिन तथा अन्य देवताओं की प्रतिमाओं का निर्माण करने के लिए प्रेरित हुए। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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