Book Title: Ayurvediya Kosh Part 01
Author(s): Ramjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
Publisher: Vishveshvar Dayaluji Vaidyaraj

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Page 16
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्री गणनाथ सेन शर्मा, सरस्वती, विद्यासागर, एम० ए०, एल० एम० एस० ने लिखी है । आपको प्रस्तावना होते हुए यद्यपि हमको कुछ भी लिखने की आवश्यकता न थी, तो भी पाठकों की विशेष जानकारी के लिए हमें यहाँ कुछ लिखना उचित जान पड़ा । अतः इस कोष में पाए हुए विषयों का श्रांशिक परिचय निम्न पंक्तियों के अवलोकन से हो सकेगा। १-इस कोष में रसायन, भौतिक-विज्ञान, जन्तु-शास्त्र तथा वनस्पति-शास्त्र, शरीर-शास्त्र, द्रव्यगुणशास्त्र, पूवच्छेद,शारीर कार्य-विज्ञान,वाइन्द्रिय व्यापार शास्त्र औषध-निर्माण, प्रसूति शास्त्र, स्त्रीरोग,बालरोग, व्यवहारायुर्वेद एवं अगद-तन्त्र,रोग विज्ञान,चिकित्सा तथा विकृति विज्ञान,जीवाणु शास्त्र,शल्य शास्त्र इत्यादि आयुर्वेद विषयक प्राय: सभी आवश्यक संस्कृत, हिंदी, अरबी, फारसी, उर्दू तथा हिंदी में प्रचलित अंगरेजीके शब्द और प्राणिज,वानस्पतिक, रासायनिक तथा खनिज द्रव्यों के देशी विदेशी एवं स्थानिक व प्रांतीय आदि लगभग सवा सौ भाषा के पर्याय ब्युत्पत्ति एवं व्याख्या सहित अकारादि क्रम से पाए हैं । क्रमागत प्रत्येक शब्द का उच्चारण रोमन में तथा उसका निश्चित अँगरेजी वा लेटिन पर्याय अंगरेजी लिपि में दिया गया है, जिसमें केवल अँगरेज़ी भाषा भाषी पाठक भी इससे लाभ उठा सकें । पुनः उन शब्द के जितने भी अर्थ होते हैं, उनको नम्बरवार साफ़ साफ़ लिख दिया गया है। और उस शब्द को जिसके सामने उसकी विस्तृत व्याख्या करनी है, बड़े अक्षरों में रक्खा गया है और व्याख्या की जाने वाले शब्द के भीतर उसके समग्र भाषा के पर्यायों को भी एकत्रित कर दिया गया है। २-औषधों के प्राय: सभी भाषा के पर्याय अकारादि क्रममें मय अपने मुख्य नाम एवं अँगरेज़ी वा लेटिन पर्याय के साथ आए हैं, किन्तु उनका विस्तृत विवेचन मुख्य नाम के सामने हुआ है। मुख्य नाम से हमारा अभिप्राय (1) श्रौषध के उस नाम से है जिससे प्रायः वह सभी स्थानों में विख्यात है अथवा उसका शास्त्रीय नाम, (२) जिससे उसे पर्वतीय वा अरण्यवासी लोग जानते हैं और (३) वह जिससे किसी स्थान विशेष के मनुष्य परिचित हैं। मुख्य संज्ञानों की चुनाव में उत्तरोत्तर नाम अप्रधान माने गए हैं अर्थात् शाखीय व व्यापक संज्ञात्रों से प्रारण्य वा पर्वतीय पुनः स्थानिक संज्ञाएँ अप्रधान मानी गई हैं। यह तो हुई मारतीय औषधों की बात । इसके अतिरिक वे प्रौषध जो एतद्देशीय लोगों को अज्ञात हैं और उनका ज्ञान एवं प्रचार विदेशियों द्वारा हुआ है, उनका तथा विदेशी औषधों का वर्णन उन्हीं उन्हीं की प्रधान संज्ञाओं के सामने किया गया है। औषध वर्शन में प्रत्येक मुख्य नाम के सामने सर्व प्रथम उसके प्रायः सभी भाषा के पर्यायों को एकत्रित कर दिया गया है। पर्यायो' के देने में उनके लीक होने का विशेष ध्यान रक्खा गया है। विस्तृत अध्ययन, अनुशीलन एवं अनुसंधान के पश्चात् ही कोई पर्याय निश्चित किया गया है। इस सम्बन्ध में अत्यन्त खोजपूर्ण एवं संदेह परिहारक टिप्पणियाँ मी दी गई हैं । इतने विस्तृत पर्यायों की सूची भी शायद ही किसी ग्रंथ में उपलब्ध हो। पुनः यदि वह औषध वानस्पतिक वा प्राणिज है तो उसका प्राकृतिक वर्ग दिया गया है। यदि वह औषध ब्रिटिश फार्माकोपीमा वा निघण्टु में ऑफिशल वा नौट ऑफिशल है तो उसे लिख दिया गया है एवं उसके रासायनिक होने की दशा में उसका रासायनिक सूत्र दिया गया है । इसके पश्चात् प्रत्येक औषध का उत्पत्ति स्थान वा उद्भवस्थान दिया गया है। फिर संज्ञा-निर्णायक टिप्पणी के अन्तर्गत उसके विभिन्न भाषा के प यो पर अालोचनात्मक विचार प्रगट किए गए एवं संदिग्ध औषधों के निश्चीकरण का काफी प्रयत्न तथा मिथ्या विचारों का खण्डन किया गया है । मुख्य मुख्य संज्ञाओं की व्युत्पत्ति दी गई है और तविषयक विलक्षण बातो' एवम् उनके भेदों का स्पष्टीकरण किया गया है। पुनः इतिहास शीर्षक के अन्तर्गत यह व्यक्त किया गया है कि उन औपध सब प्रथम कब और कहाँ प्रयोग में लाई गई । इसके अन्तर्गत गवेषणापूर्ण नोट लिखे गए हैं, जिसके द्वारा प्राचीन अर्वाचीन वैद्यों के पारस्परिक शंकाओं का निवारण होता है। For Private and Personal Use Only

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