Book Title: Ayurvediya Kosh Part 01
Author(s): Ramjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
Publisher: Vishveshvar Dayaluji Vaidyaraj

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Page 15
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir लेखक के दो शब्द ! SANTO HAMAN गत में जितना भी कार्य होता है, उसका कोई न कोई कारण अवश्य होता है। बिना कारण के किसी भी कार्य का होना असम्भव है. पुनः वह मानव बुद्धि द्वारा अवगत हो हो सके अथवा नहीं। यह एक अटल सिद्धान्त है। जो बात सर्व साधारण के लिए कोई मूल्य नहीं रखती वही बात उस महा पुरुष के लिए जिसके द्वारा कोई महान कार्य सम्पादित होने वाला होता है, अत्यन्त महत्व रखती है। परिपक सेव सदैव ही पृथ्वी तल पर टपका करते हैं। परन्तु सामान्य rai मानव हृदय पर उसका क्या प्रभाव पड़ता है ? पर नहीं इसी एक बात ने सर आइज़क न्यूटन को गम्भीर चिन्ता में डाल दिया और उसके अन्वेषक हृदय तल से गुरुत्व अथवा आकर्षण शक्कि ऐसे महान् उपयोगी सिद्धान्त का आविर्भाव हुआ और आज भी बड़े बड़े वैज्ञानिक उस साधु पुरुष के यश के मीत गाते हैं। अाज से लगभग २० वर्ष की बात है कि हमें एक ऐसा योग बनाना था जिसमें "कालाबाला” शब्द प्रयुक्त हुआ था। समझ में नहीं आया "काला बाला" है क्या बला ? और योग का बनाना जरूरी था । अस्तु हमने. उसकी तलाश में संस्कृत तथा हिन्दी श्रादि कई भाषा के प्रायः सभी कोषों को निचोड़ डाला और काशी के तत्कालीन प्रायः सभी आयुर्वेद शास्त्रियों एवं बड़े बड़े प्रौपच-विक्रेताओं से पूछ ताछ की। पर, सफलता ने मिली । और सफलता मिले भी तो क्यों ? उन शब्द महाराष्ट्री भाषा का था ( हिन्दी में सुगन्धवाला एवं उशीर दोनों के लिए प्रयुक्र होता है)। अन्ततः विवश होकर उस औषध के बिना ही, शेष औषधियों के द्वारा योग प्रस्तुत कर उसका प्रयोग कराया गया और उससे सफलता भी मिली। पर हमें संतोप न हुअा। हमने अपने मन में इस बात को की दृढ़ प्रतिज्ञा करली कि हम एक ऐसे आयर्वेदीय-शब्द-कोष का निर्माण करेंगे जिसमें औषधियों के प्रायः सभी भाषा के नाम अकारादि क्रम से दिये गए हों। उसी समय से हमने शब्दों का संकलन प्रारम्भ कर दिया । वाँ विंध्य एवं हिमवर्ती पर्वत शिखरों एव' संघन भयावह वनों की हवा खाई, जंगली मनुप्यों यथा कोल भील श्रादिकों से मिला, विभिन्न प्रान्त के लोगों से बातचीत की और इस प्रकार क्रियात्मक रूप से औषधियों की खोज एवं शास्त्रीय वनों से तुलना कर निश्चित निर्णय प्रतिपादनार्थ यथेष्ट मसाला एकत्रित करने में संलग्न हो गया। उस समय केवल इतना ही विचार था। * पर उस विचार एवं यत्न का जो विकसित रूप अाज अापके सम्मुख है, उस समय इसका स्वप्नाभाष भी न था। परंतु जिस प्रकार एक नन्हा सा बीज मिट्टी, जल तथा वायु के संपर्क से अंकुरित होकर इसने विशाल वृक्ष का रूप धारण करता है, उसी प्रकार यह छोटा सा विचार उपयत वायमंडल एवं सहायता द्वारा परिपोषित होकर ऐसे महान कार्य रूप में परिणत हुआ है । "कालोबाला" का न मिलना कोई असाधारण बात न थी; परंतु इसी एक विचार से इस कोषकी रचना का सूत्रपात होता है। तभी से अध्यवसाय एवं कठिन परिश्रम के साथ अपना अध्ययन जारी रहा। बीच बीच में विचार विनिमय एवं प्रत्येक विषय के अनुसंधानपूर्वक अनुशीलन तथा क्रियात्मक प्रयोग जन्य अनुभव द्वारा विचार दृढ़ एवं विकसित होते गए। जिसके परिणाम स्व. रूप आज यह दीर्घ काय ग्रन्थरत्न का एक छोटा सा अंश (प्रथम खण्ड) आपके सम्मुख है । इसकी प्रस्तावना उत्कृष्ट विद्वान, वैद्य शिरोमणि, व चोंके प्राचार्य एवं प्रत्यक्ष शारीर जो अनेक श्रायुर्वेदीय कालेजों एवं विद्यापीठ के पाठ्यक्रममें है और शारीर ग्रंथों में संस्कृतमें अपने विषयका एक अनुपम प्रामाणिक ग्रंथ रत्न है, और जिससे शरीर विषयक शब्दों के लिए हमको भी काफी सहायता मिली है के रचयिता महा महोपाध्याय कविराज For Private and Personal Use Only

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