Book Title: Avashyak Sutram Part 03
Author(s): Punyakiritivijay
Publisher: Shripalnagar Jain Shwetambar Murtipujak Derasar Trust

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Page 12
________________ ध्यानं सम्पादकीयम् तृतीयो विभागः श्रीआवश्यक नियुक्तिभाष्यश्रीहारि० वृत्तियुतम् भाग-३ // 10 // विवेकः निर्वाण स्वरूपः लिङ्गानि लेश्या फलं स्वामी अन्यत् 1. पृथक्त्ववितर्कसविचारं अवधः आद्य त्रये द्वयोरनुत्त- सर्वप्रमादरहिता शुक्लध्यानं | 2. एकत्ववितर्कमविचार असंमोहः शुक्ललेश्या रामरसुख मुनयः क्षीणोपशान्त 3. सूक्ष्मक्रियाऽनिवर्ति चरमे चरमद्वयो- मोहा: पूर्वधराव 4. व्युच्छिन्नक्रियाऽप्रतिपाति व्युत्सर्ग: लेश्यातीतं चरमद्वयोः परमशुक्लं सयोगायोग केवलिनः पडिकमामि पंचहि समिइहिं सूत्रेण संपूर्णा पारिष्ठापनिकानियुक्तिः दर्शिता। __ पारिष्ठापनिका एकेन्द्रिय नो एकेन्द्रिय ____ वाउ वनस्पति त्रसप्राणी नोत्रसः आत्मसमुत्थं परसमुत्थं आत्मसमुत्थं परसमुत्थं आत्मसमुत्थं परसमुत्थं आत्मसमुत्थं परसमुत्थं आत्मसमुत्थं परसमुत्थं ___विकलेन्द्रियः पञ्चेन्द्रियः आहारः नोआहारः आभोग अनाभोग आभोग अनाभोग द्वीन्द्रियः त्रीन्द्रियः चतुरिन्द्रियः मनुष्यः नो मनुष्यः जाता अजाता उपकरणं नोउपकरणं तज्जात अतज्जात तज्जात अतज्जात तज्जात अतज्जात संयतमनुष्यः असंयतमनुष्यः सचित्तः अचित्तः जाता अजाता। सचित्तः अचित्तः सचित्तः अचित्तः उच्चारः प्रश्रवणं श्रेष्मः सिंघानकः पृथ्वी - अप् // 10 //

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