Book Title: Atmonnati Digdarshan Author(s): Vijaydharmsuri Publisher: Shah Harakchand Bhurabhai View full book textPage 4
________________ [ २ ] प्रथम तो जे आत्मानी उन्नति माटे प्रयत्न करवानो छे ते आत्मा एवो कोई पदार्थज छे के नहि ते बाबतमा आस्तिक नास्तिक वच्चे मोटो विवाद छे.. ____ तमाम आस्तिक दर्शन आत्मा 'दार्थनी सत्ता अर्थात् अस्तित्व बतावे छे, त्यारे नास्तिको जडवादने मान्य करी आत्मवादने तिरस्कारे छे. जेवाके वार्वाक, सौत्रान्तिक, वैभाषिक विगेरे पञ्च महाभूतथी तथा पञ्चस्कन्ध विगेरेथी अतिरिक्त ( भिन्न ) आत्म पदार्थने मिलकुल मानता नथी. तेओमां चार्वाकोनुं मन्तव्य सामान्य रीते आ प्रमाणे छ:-"पञ्चभूतमांथी एक अभिनव (नवीन) शक्ति पेदा थायछे, जे चलनादि क्रिया को छे. जे वारे आ पञ्चभूत मांहेला एकादनी सत्ता निर्बला थायछे. त्यारे लोको मृत एटले मरी गयो एवो व्यवह र करेछे. जेम गोल, लोट, ताडी विगेरे पदार्थोना संयोगथी “मदशक्ति" पेदा थाय छे, जेम जलमांथी 'परपोटा' पेदा शाय छे, ने तेमांज लय पामे छे तेज प्रमाणे पञ्च महाभूतमांशी एक 'अमुक शक्ति' उत्पन्न थायछे, अने तेमांज पाछी लय पामे छे, तेज शक्तिने धूर्तलोको आत्मा मानी लोकोने परलोकनो भ्रम पेदा करावेछे, नरकादिनी खोटी भीति (बीक) बनावी सांसारिक सुखनोPage Navigation
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