Book Title: Atmonnati Digdarshan Author(s): Vijaydharmsuri Publisher: Shah Harakchand Bhurabhai View full book textPage 9
________________ [ १७ ] परस्पर बाधा रहित छतां ठीक लागे नहि, माटे श्रद्धासहित ज्ञानने सम्यक्ज्ञान बतावेल छे, ते सम्यक्ज्ञानना महिमानुं वर्णन शास्त्रमां अनेक स्थळे करेलुं छे. तेमांथी वानकी रूप एक श्लोक अहीं प्रदर्शित करूं, भवविटपिसमूलोन्मूलने मत्तदन्ती जडितिमिरनाशे पद्मिनीप्राणनाथः । नयनमपरमेतद् विश्वतत्त्वप्रकाशे करणहरिणबन्धे वागुरा ज्ञानमेव ॥ अर्थः - संसार रूप वृक्षने मूळ सहित उखेडी नाखवामां मदोन्मत्त हाथी समान, मूर्खता रूप अंधकारनो नाश करवामां सूर्य समान व समस्तजगत्ना तत्त्वोनो प्रकाश करवामां त्रीजुं नेत्र तथा इंद्रिय रूप हरिणोने वश करवामां वागुरा (पाश) समान ज्ञानज छे. , सम्यक्ज्ञान रूप प्रथम रत्न कह्या बाद बीजुं रत्न सम्यक् दर्शन छे. जेना विना जीवनुं कदी कल्याण थनार नथी. तेनाज जोरथी अनीज कृपाथी अनंत जीवो शिवमन्दिरमां बीराज्या छे, बाराजे छे अने बीराजशे आंक विनानुं बिंदु जेम व्यर्थ छे, अर्थात् संख्या बनावी शकतुं नथी. तेम सम्न्य •Page Navigation
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