Book Title: Atmonnati Digdarshan Author(s): Vijaydharmsuri Publisher: Shah Harakchand Bhurabhai View full book textPage 7
________________ [ ५ ] पेढी उपर जइ अनुभव लईश तो मालूम पडशे के मोतीना पैसा अर्थात् तेनी उत्कृष्टता अपकृष्टता पाणी उपरज आधार राखे छे. तेथी पण जेवू पाणी रूप कारण तेवू कार्य सिद्ध थयु. कारणना गुणों कार्यमां आवेछे, तेथी एम पण अनुमान थइ शके छे के ज्ञान विज्ञानादि गुणोवाळो आत्मा कदी पण पांच जडभूतोथी गनेलो नथी. हवे कदाच पांच भूतोमांना एक एकथी आल्मानी उत्पत्ति मानीश तो सुतरां खण्डित छो, कारणके पांच भूतोना समुदायथी आत्मा सिद्ध थयो नहि तो अमुक एक एक महाभूतथी केवी रीते सिद्ध थशे ? कदाच वधारे जुस्मामां आवीने साबित करवानी चेष्टा करीश. तो पांच आत्मा सिद्ध थशे. तेवारे कोनाथी कार्य लईश? इत्यादि विवेक दाटथी विचारीशु तो सुख दुःखने जाणनार स्मृति विगेरे गुणसंपन्न आत्मापदार्थ अनुभव सिद्ध छे तथा . कुशाग्रबुद्धि तत्त्ववेत्ताओए अनुमान प्रमाणथी सिद्ध करेलो छे. ज्यारे आत्मा पदार्थ साबित थाय छे त्यारे पुण्य पापनो संबन्ध पण स्वतः सिद्ध छे, ज्यारे पुण्य पाप छे तो परलोकने माटे तो कहेवूज ? हवे ज्यारे परलोक सिद्ध छे तो जरूर आत्मिक नरवरोए आत्मानी ओळखाण करवी उचित छे. दरेक दर्शनकारो आत्मासिद्धि माटे मोटो प्रयत्न कयों छे,Page Navigation
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