Book Title: Atmaprabodh
Author(s): Jinlabhsuri
Publisher: Hiralal Hansraj

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Page 11
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ ७ ॥ ग्राम- अथ यस्यात्मबोधो न जातः, स प्राणी मनुष्यदेहत्वात् शृंगपुबाद्ययुक्तोऽपि पशु. प्रबोधः रेव बोध्यः, याहारनिडाजयमैथुनयुक्तत्वेन पशुना समानधर्मत्वात् , तथा येन प्राणिना वस्तुगत्या आत्मा न झातस्तस्य सिगितिर्दूरे वर्तते; न पुनस्तस्य परमात्मसंपदे। अनुपमलदाकत्वात् . संसारिकधनधान्यादिहिरेवौत्सुक्यकारणमस्ति. पुनस्तदाशानदी सदैवापूर्णा तिष्टति. तथा पुनर्यावत्प्राणिनामा मबोधो न जातस्तावन्नवसमुडो उस्त रोऽस्ति. तावदेव हि मोहमहानटो दुर्जयो विद्यते. तावदेव च कषाया अतिविषमाः संतीत्यतः सर्वोत्तम श्रामबोध इति स्थितं. अय कारणं विना कार्यात्पत्तिर्न भवतीति न्यायादात्मबोधप्रादुर्भावे सद्भूतं किमपि कारणं वक्तव्यं. तच्च वस्तुतः सम्यक्त्वमेव संभवति. नान्यत् . सम्यक्त्वमंतरेणागमे तस्योत्पत्तेरश्रुतत्वात् . ततश्च सिकः सम्यक्त्व मूलक श्रामबोध इति. अथ सम्यक्त्व स्वरूपप्रतिपादनाय तावत्त उत्पत्तिरीतिरभिधीयते. कश्चिदनादिमिथ्यादृष्टिर्जीवो मिथ्यावप्रत्ययमनंतान पुलपरावर्तान् यावदस्मिन्नपार For Private and Personal Use Only

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