Book Title: Atmanand Prakash Pustak 092 Ank 11 12
Author(s): Pramodkant K Shah
Publisher: Jain Atmanand Sabha Bhavnagar

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Page 15
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org માત્માને પ્રકાશ राजा अपने स्थानमें वापिस आया और वामन को कहने लगा, "हे विद्यासिद्ध ! हे गुणवृद्ध ! हे जगप्रसिद्ध ! हे भाग्यसमृद्ध ! अपने कौतुक को छोड़कर अपना असली रूप प्रकट करो. माया रूप को समाप्त करो और मेरी पुत्री को स्वीकार करो। " राजा की प्रेरणा Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private And Personal Use Only " से वामनने अपना असली रुप प्रकट किया तथा अपनी पुत्री मदनमंजरी का विवाह जिनदत्त के साथ कर दिया । राजाने आवे राज्य की बजाय सारा राज्य जिनदत्त को दे दिया और स्वयं' दीक्षा ग्रहण कर ली । [कण्गः }

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