Book Title: Atmanand Prakash Pustak 092 Ank 11 12
Author(s): Pramodkant K Shah
Publisher: Jain Atmanand Sabha Bhavnagar

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Page 14
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir આમાનંદ પ્રકાશ हो गया। तब राजा भी बहुत भयभीत हो गया देशता में कहा. “भव्य जीवो में ज्ञान ही और यह उद्घोषणा करवाई “ जो भी कोई दुर्लभ है । कहा भी है :व्यक्ति इस हाथी को काबू करेगा उसके साथ आहार निद्रा भयमैथुनानि तुल्यानि राजकन्या मदनमंजरी का विवाद होगा तथा सार्द्ध पशुभिनराणम् । उसको आधा राज्य दिया जायगा।" उद्घोषणा ज्ञान नराणामाधका विशपा. सनकर वामन (कबडे ने इस कार्य को करने की स्वीकृती दी। ज्ञानेन हीनाः पशवो मनुष्याः॥ उसने गजवशीकरणी विद्या को स्मरण किया। अर्थात पशुओ और मनुप्यो में आहार, उसने हाथी के पास आ कर कहा, "हे गजराज! निद्रा, भय और मैथुन समान रूप से होते है वृथा लोगों को क्यों परेशान कर रहे हो। परन्तु मनुष्यों में ज्ञान विशेप रूपये होता है। यदि तुझ में शक्ति है तो मेरे सामने आओ" ज्ञान से रहित मनुष्य पशु हैं। यह सुनकर हाथी कोपायमान होकर अपनी तुल्येऽपि उदरभरणे मूढ सुण्ड को ऊंची कर दौडने लगा। वामन उसके अमूढानां पदय विपाकम् । आगे आगे तेजी से चलने लगा। इस प्रकार एकेषां नरकदुःखम् , करने से हार्थी एकदम थक गया। फिर वामन अन्येषां शाश्वत सुखम् ॥ जल्दी से हाथी के ऊपर चढ़ गया और कुम्भ अर्थात - मुख और बुद्धिमान पेटभरने में स्थल पर मुष्टि प्रहार कर उसे वश में किया। एक समान हैं परन्तु इस के फल को देग्यो । जब हाथी पूरी तरह ठीक हो गया तो उस एक को तो नरक का दुःख मिलता है और दूसरे हस्तीशाला में बान्ध दिया। मोक्षरूपी शाश्वत सुख प्राप्त करते हैं । फिर वामन ने राजा से कहा, "अपनी देशना के अन्नमें राजाने पूछा, “हे प्रभो । प्रतिज्ञा पूरी कीजिए ।” राजा सोच विचार में मेरी पत्री का वर कौन होगा।" उस समय पड गया क्या कि वडा रूप जिनदत्त सुन्दर केवल ज्ञानी ने कहा, “यही यामन म्हारी नहीं था। राजा सोचने लगा कहां मेरी रूपवती पुत्री का वर होगा।” राजाने कहा “ यह कन्या और कहां वह कूबडा। इन दोना' का अनचित सम्बन्ध कैसे ठीक रहेगा।" केवली मेल नहीं खाता । इस प्रकार टालते हुए राजाने भगवानने कहा, “राजन । यह ही उचित योग कई दिन व्यतीत कर दिये। कुछ समय व्यतीत है । इसे केवल कूबडा ही न समझा, यह होने पर उस नगरमें एक केवली भगवान पधार। वसन्तपर के काडाधिपति जीव देव संट का मालीने आकर इस की सूचना राजा का दा। पुत्र जिनदत्त है। यह विद्या के बल से वामन राजा भी केवली भगवन्त की देशना सुननें बना है और ऐसा करते हुए यह केवल विनाद के लिये पधारे। फेवली भगवन्त ने अपनी मात्र ही करता है।" For Private And Personal Use Only

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