Book Title: Atmanand Prakash Pustak 092 Ank 11 12
Author(s): Pramodkant K Shah
Publisher: Jain Atmanand Sabha Bhavnagar

View full book text
Previous | Next

Page 12
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir આ માનંદ પ્રકા उस वृत ने चार प्रत किये। फिर वह यक्ष सोचने तथा कर्मचारियो' को पहिनने के लिए लगा. “यदि ये मेरे कारण मर गया तो मेरा बढिया वस्त्र दिये तथा खाने के लिये स्थान निष्फल हो जाएगा ।'' एमा विचार दूध, चावल.घी, बन्दिया पक्वान और मिठाइया का से हापाक सेटका प दे दिया और उस आदि दी और स्वय' भी ग्याने लगा। घर क शीघ्र वहां से निकल जाने के लिये कहा । समीप एक दानशाला खुलवा दी जिस में दीन मन इन्छिन रूप का वरदान मिलने पर आर अनाथ लोगो को भोजन दिया जाता था। धूर्त ने हापाक सेट का रूप धारण किया और कभी कभी साधर्मि वत्सल भी करता था. ममी निर्विघ्न सेठके घर में पहुच गया और सर्व मन्दिरों में धन देने लगा । लनी हुई चार. प्रथम सेठ के लडको तथा कोशाध्यक्ष के मन्मुख पाई पर दोनों स्त्रियों क साथ रात्रज आदि कहने लगा-- भी ग्वलना था। नम में निम्न लिग्विन लोक दाने भागस्तथा नाशः को सत्य प्रमागित कर दिया : - स्याद् द्रव्यस्य गतित्रयम् । कीटिका सञ्चित धान्यं, यो न दत्ते, न भुङक्ते च, मक्षिका मञ्चितं मधु । तस्य तृतीया गर्भिवति ॥ कृपणः मञ्चित वितं, अर्थात धन की तीन गतियां है (१) दान ___ पापमुज्यते ।। (२) भोग (३) नाश । जो न देना है, जो अर्थानः कीडियो द्वारा एकत्रित किया हुआ न उसका उपभोग करता है तो धन की तीसरी हुआ अनाज मधुमखियों द्वारा सञ्चित शहद, गति (नाश) होती है। ___कन्जुमो द्वारा एकत्रित किया हुआ धन दसगे फिर वह कहने लगा. "एक अमीर व्यक्ति के द्व.रा ही उपभोग में आना है। समुद्र में डूब कर मर गया और उसके सारे कुछ दिनों के पदयात अमली हापाक भेट जहाज भी समुद्र में डूब कर ममाप्त हो भी घर लोट आया । घर आने पर द्वारपालों गये । इस से मेरे हृदय पर बहुत बड़ी चोट ने उसे घर में प्रवेश ही नहीं करने दिया । लगी और मैं ने यह दृढ़ निश्चय किया कि द्वारपाल ने कहा, “तुम कौन हो ।' उम में यदि मैं कुशल पूर्वाक घर पहुँच जाऊ. नो मैं कहा. “ मेरा नाम हापाक है और मैं घर का मब का मनोकामना पूर्ण कर दुगा और अपनी म्वामी है।” द्वारपाल, ने ना दिया. एक कृपणता का त्याग कर दगा" म प्रकार हापाक तो पहले से ही घाम चौटा है तुम कपोल कल्पित भाषा द्वारा अपने परिवार के तो कोई धूर्त लगते हो ।'' यह विचार करने सदस्यों को संतुष्ट क्रिया । लगा, इस समय बान करनी निरर्थक है. प्रातः दोनों स्त्रियों को सुवर्णभूपण तथा पहिनने देखा जायगा ।" लिए कीमनि वन दिये सेट के पुत्रो द्वारपालो प्रातः होने पर क स सेटने किसी दूसरे For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21