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માત્માને પ્રકાશ
राजा अपने स्थानमें वापिस आया और वामन को कहने लगा, "हे विद्यासिद्ध ! हे गुणवृद्ध ! हे जगप्रसिद्ध ! हे भाग्यसमृद्ध ! अपने कौतुक को छोड़कर अपना असली रूप प्रकट करो. माया रूप को समाप्त करो और मेरी पुत्री को स्वीकार करो। " राजा की प्रेरणा
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से वामनने अपना असली रुप प्रकट किया तथा अपनी पुत्री मदनमंजरी का विवाह जिनदत्त के साथ कर दिया । राजाने आवे राज्य की बजाय सारा राज्य जिनदत्त को दे दिया और स्वयं' दीक्षा ग्रहण कर ली ।
[कण्गः }