Book Title: Atmanand Prakash Pustak 092 Ank 01 02
Author(s): Pramodkant K Shah
Publisher: Jain Atmanand Sabha Bhavnagar

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Page 16
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir આમાનંદ પ્રકાશ on हिन्दी वि भा ग संकलन : हिमतलाल अनोपचंद मोतीवाळा धार्मिक धारावाहिक कथा जिनदत्त लेखक- मुनिराज यशविजय __ भारत वर्ष में वसन्तपुर नाम का मगर विमलसेठ की पुत्री विमलमती से महोत्सव था । वहां पर गम्भीर, दानी, विशेषज्ञ पूर्वक किया पिताकी कृपासे वह निश्चिन्त आदि अनेक गुणों से सुशोभित अरिमर्दन था। वह धार्मिक पुस्तको का स्वाध्याय नामक राजा राज्य करता था। उसी नगर करता था तथा साधुओं की सेवा करता था में एक धर्मपरायण, कोडाधिपति सेठ रहता साधुओं के साथ परिचय के कारण वह था । उसका नाम जीवदेव था । उस की विषयों से विमुख हो गया। धर्मपत्नो पतिमार्गानुगामिनी, धर्मपरायणा, एक दिन जिनश्री अपने पति से कहने सतीत्व आदि गुणों से अलंकृत 'जिन श्री' लगी, हे प्राणनाथ ! कोई ऐसा उपाय करो थी। उनका एक पुत्र था। जिनदत्त' जिस से जिनदत्त को घरकी चिन्ता हो । वह सदाचारी, जितेन्द्रि, सुशील, सरलस्वभावी हमारा तो एक ही पुत्र हैं । इस प्रकार ऐसे एवं उदार, था । उस के गुणों का वर्णन कैसे काम चले गा ।' करते हुए इस प्रकार कहा है। सेठ ने कुछ दिन रूकने के लिये कहा । पर परिवादे मूकः परनारी बीक्षष्वन्धः। फिर बादमें सेठानी ने अपने पतिदेव को कहा, षड्गुपरधनहरणे, स जयति लोके महापुरूषः। 'आप नहीं जानते हमारा पुत्र सांसारिक सुख अर्थात- दूसरे की निन्दाकरने में वह से विमुख है तो अपना जो अपार धन गूङा था, परनारी का मुख देखने में वह सम्पत्ति हैं उस का उपभोग कौन करेगा ।' अन्धा था, दूसरे का घन चुराने में वह लंगडा उस के इस प्रकार कहने पर सेठ चिन्ता था लोक में उस महापुरुष की जय होती है। प्रकट करते हुए कहने लगा, यह सत्य हैं कि यौवनावस्था के आगमन पर माता पिता वह घर की चिन्ता से मुक्त है।' ने उस का विवाह चम्पापुर में रहने वाले फिर एक दिन सेठ ने अपने पुत्र को For Private And Personal Use Only

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