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આમાનદ પ્રકાશ
__फिर कुछ समय व्यतीत होने पर श्रीमती का विवाह जिनदत्त से कर दिया और उसे के मुख से पहले धुआं निकला फिर बहुत बड़े हाथी, घोडे, स्वर्ण, रत्न, तथा बहुमूल्य वस्त्र शरीर वाला एक विषैला सपं निकला। दिये । इस प्रकार कुछ काल उसने सिंहलद्वीप उसने क्रोधपूर्वक शब को डसा। उसने के में सुखपूर्वक व्यतीत किया । उपरान्त जब सप पुनः कुमारी के शरीर में औदत्त सेठ क्रय-विक्रय करने के पश्चात प्रवेश करने लगा तो जिनदत्त ने उसे पीछे कुमार को कहने लगा, 'अब हमें अपने नगर से पकड कर इतनी शक्ति से घुमाया कि की ओर चलना है । 'जिनदत्तने राजा से उसका बल क्षीण हो गया और उसे एक अपने नगर की ओर चलने की आज्ञा मांगी।' छोटे से कुए में फैक दिया । इस प्रकार राजा कहने लगा, 'हे कुमार ! तुम्हारे साथ कुमारी की व्याधि समाप्त हो गई । उस जो हमने समय व्यतीत किया है वह बहुत रात में न तो कोई उपद्रव हुआ और न ही सुखद था । आप जैसे श्रेष्ठ पुदुष तो संसार कोई मृत्यु हुई । जहां पर साहस होता है में विरले ही होते है, फिर मैं आप को अपने वहांपर सिद्धि भी होती है।
नगर को जाने की अनुमति देता हूं। चलते
समय राजाने जहाज, स्वर्ण, बहुमूल्यरन्न आदि अगले दिन प्रातः राजमहल में यह समा.
अनेक वस्तुएं दी। चार सब को पता चल गया । राजा, रानी सभी इस आश्चर्यजनक घटना से प्रसन्न थे ।
(क्रमश.) राजा ने शुभ मुहूर्त में अपनी पुत्री श्रीमती
वर्धमान महावीर को निर्वाण प्राप्ति गौतम बुद्ध के पहले ही ई. पू. ५२७ में ही हो गई थी । मृत्यु से पूर्व ही उनके संघ में १४००० श्रमण एवं ३६००० श्रमणियां थीं । उनके धर्म परिवार में ३१४ पूर्वज्ञान के अधिकारी मुनि थे, १३०० अवधिज्ञानी मुनि थे, ७०० वैत्रियक अब्धिधारक थे । ७०० अनुत्तर विमान स्वर्ग में जानेवाले साघुओं की संख्या धी । ५०० मनःपर्यव ज्ञान के धारण करनेवाले थे। ४०० विद्वान खण्डन-मण्डन के विषयका प्रतिपादन करते थे । १,५६,००० श्रावक तथा ३,१८,००० श्राविकाएँ ऐसी थी जिन्होंने धर्म की बारह व्रतों को पूर्ण रुप से आजन्म पालन करने का बीडा उठाया था।
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