Book Title: Atmanand Prakash Pustak 092 Ank 01 02
Author(s): Pramodkant K Shah
Publisher: Jain Atmanand Sabha Bhavnagar

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Page 22
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org આત્માન’દ પ્રકાશ ती शिला पर अरणिक मुनि अपने शरीरका उत्सर्गं करदेता हैं । परमात्मा के ध्यान में तल्लीन होजाता है । उस अवस्था शरीर के साथ उनका कोई संबंध नहीं । सच्चे योगका साघना गरमी या ठंड़ी, सुख या दुःख, किसी का भान नहीं रहता । वह चित्तकी उत्कृष्ट एकाग्रता में तल्लीन हो जाता है । जड़-शरीर से उसका कोई संबन्ध नहीं रहता । अरणिक का आत्मा मोक्ष प्राप्त करता है । इसका मतलब क्या है ? यही हैं कि मनुष्य जिस समय व्रतधारी होता है वह अगर अपने व्रतों में दूषण लगा लेता है तो भी, उसे पश्चात्ताप होता है । उसे फिर से ऊपर चढने का मौका अवश्य रहता 1 लेकिस जिसने व्रत लिया नहीं, प्रतिज्ञा की Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ७ नहीं फिर भी उसका पालन करते हुए अगर कहीं दूषण लगा देता है, तो उसके लिये पश्चात्ताप का मौका नहीं होता । और वह हमेशा के लिए गिर जाता हैं । For Private And Personal Use Only कई लोग मेरे पास ऐसे आते हैं, जिन्होंने प्रतिज्ञापूर्वक व्रत लिये और भंग या दूषण होनेपर प्रायश्चित्त लेते है, परन्तु ऐसा एक भी आजतक नहीं आया जिसने बिना प्रतिज्ञा ! लिये व्रत पालन किया हो, और प्रायश्चित किया हो । इसलिए व्रतधारी होना बहुत जरुरी है ।

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