Book Title: Atmanand Prakash Pustak 012 Ank 08
Author(s): Jain Atmanand Sabha Bhavnagar
Publisher: Jain Atmanand Sabha Bhavnagar

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Page 28
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir આત્માનંદ પ્રકાશ तथा बहारके जैन समुदायसे व जैनेतराके पधारनेसे और यहांके निवासी शेठ किसनदासजी आदि श्री संघके अत्यन्त उत्साह ओर उक्त महाशयके अन्यउदार वृत्ति होनेसे प्रवेशका गठ तथा बमो दिक्षाका महोत्सव तथा श्रीमन्दिरजीमे पुजा पढानेका गत और स्वामीवत्सल्य एवम मंझपकी रचना और नन्दिमे सोनामहोरका चढाना तथा श्रीसंघ प्रतापगढकी तरफसे देव अव्यमें दृषि वगेरा धर्मोन्नतिके कार्य यहांपर अतिव प्रशंसनिय हुए हैं और दिदाको समाप्तिमें जैन समुदाय प्रार्थना होनेसे और श्री शान्तमूर्ति महाराज श्रीहंसविजयजी महाराजकी आझानुसार मुनि लब्धिविजयजी महाराजका समयोचित मनावशाली व्याख्यान हुआ तत्पश्चात इस सुअवसरपर आए हुए शेठ सदमीचंदजी घीयाने मंगलाचरणके बाद महात्मा शान्तमुखा श्री मुनि हंस विजयजी महाराज तथा श्रीमान् पन्यास मुनि संपतविजयजी महाराज और मुनि श्रीलब्धिविजयजी महाराजादि मुनिराजोंको यहांपर पधारनेका धन्यवाद मनाते हुए, बहारके जैन जातीके नेताओं को और यहांके श्री संघको हार्दिक धन्यवाद देते हुए फरमाया कि धन्य है यहांके श्री संघको के जिन्होंने महाराजजी साहिवके उपदेशामृतसे इतने अस्पहाइमें पूर्ण उत्साहसे इतने धर्मोन्नतिके कार्य कर बतलाए, और अत्त मेरी यह प्रार्थना कि आप सर्व सज्जन मुनि महाराजने अपने व्याख्यानमें जिन जिन बातोंपर उपदेश फरमाया है उसमेंसे सर्वथा नहीं तो अपनी शक्तिके अनुसार ग्रहण करे बस दिक्षा महोत्सव समाप्त हुआ और बमे गउके साथ महात्माजी वापीस मुनिममक्षके साथ उपाश्रयमें पधारे-आपका यहांपर दो चार दिन विराजमान होगा, और प्रतापगढकी और जाना होगा. प्रेक्षक તત્ત્વજ્ઞાન પામવાનો અને તેને સફળ કરી લેવાન ચેખો અને સરલ ઉપાય. વિકાચરણ. " श्रूयतां धर्म सर्वस्वं, श्रुत्वा चैवा वधार्यताम; आत्मनः प्रति कूलानि, परेषां न समाचरेत्. (શ્રીમાન હરિભદ્રસૂરી શ્રી લેક તત્વ નિર્ણય ગ્રંથ) ૧૪૪૪ ઉત્તમ ગ્રંથના પ્રણેતા પોતાના બાળ શાસ્ત્ર અભ્યાસ અને આત્મ અનુભવ ઉપર ભવ્ય પ્રાણીઓના For Private And Personal Use Only

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