Book Title: Atmanand Prakash Pustak 006 Ank 06
Author(s): Motichand Oghavji Shah
Publisher: Jain Atmanand Sabha Bhavnagar

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Page 15
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हमारी ती यही हाती. ૧૩૫ कर लिखताहूंकी हमारे वहुतसे भाई होनेही सभा समाप्त निकलते ही मंडपसे बाहर कानाफूसी कीसी बातें प्रारंभ करदेते हैं कोई कहताहै कि अरे यार क्या घरपर चलकर इसी तरह बरतना होगा कोई कहताहै कि रे यार हमे तो ऐसा करनो वडा कष्ट होगा कोई कहना है कि अरे यार हमारीनो घरवालीके आगे चरतीही नही चौथे गुरु घंटाल वौल उठे अरे क्यों पडे भीकते हो करनेका काम और है मुन्नेकी बातही और है यहां सुनने आयेथे सुन चले क्या मारी उमरकी रजष्टरी कराने आये थे वा अपने घरवारका बनामा करनेथे . जो पाबंद हो चलें-तुमतो नाहकका वहम करतेहो तुम्है तो ध्यानही नहीं रहता अपनीतो वही पुरानी रीती है कि मंडप से बाहर निकलते ही कपडे झाड दिये मानो सुना सुनाया यही झाड . दिया घरचलकर करेंगे वो जो हमें : अच्छा लगेगा. प्यारे पाठको कीजये विचार क्या कीसीने उन भले मानसोंको जबरदस्ती पकड बुलापाचा जो मारे डरके आकर प्रतिज्ञा कर चले और भंडपो बाहर निकलने ही वे सुरी आवाज लगाने लगे सचतो ये है कि वहां हजारों मनुष्यों के सनमुख लज्याने मार कहो चाहै मान प्रतिष्ठाके हेतु कहो हां हां कर जाते है और घरपर घरवाली का गोफ गालिब है तो प्रतिज्ञाका पालन करे कौन ता ऐसीही वेसुरी रागनी नः उडावें तो बेचारे करें क्या प्यारे भाईयो इतनेही पर समाप्ती नहीं है जरा कान लगाये अपनी कोमकी दशा मुने जाइये-उपरोक्त वताई पारटी चाहै थोडी भीहो पर आधिकांश भागता घर पहुंचतेही मोटी पटाक भूलजाताहै जो तुच्छ सभाओमें प्रस्ताव पास कर आये है उसपर कंचित मात्रभी नहीं चलते जो मुखसे कह आये है उसका कंचितभी ध्यान For Private And Personal Use Only

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