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આમાનન્દ પ્રકાશ, क्यों नः हो उन्यति के शिखरपर ले जाते हैं जो जुबानसे पास किया है उसपर अडिग अटल बने रहते हैं. परन्तु हमारे में ठीक उनसे विपरीत ये बड़ा भारी दोष है. कि सब कुच्छ नकल करके भी अंतमें कार्य दक्ष नहीं बनते अपनी प्रतिझ्याका पालन करना कराता नहीं जानते मारे काम उनके से करते करते अंतमें (टोय टांय फिस ) कर बैठते हैं.
हमारे विद्वान हमारे अग्रेसर हमारे वास्ते बहुत कुच्छ परि. श्रम करते है प्रति वर्ष नगर २ की सभाओं के अतिरिक्त जैन श्वेताम्बर कौनफिर म प्रान्तिक कोनफिरन्स आदि वडी २ सभा बहुत धूमधामके साथ लक्षों रूपय व्यय करके इसी जातिय सुधार वास्ते की जाति है कि जिसका वर्णन छापते २. समाचार पत्रों को होशतक नहीं आता उन वडी २ सभाओं की महीनों पहलेसे चर्चा प्रारंभ होजाती है अनेक प्रस्तावों पर प्रथम सेही आन्दोलन होता होता वो वडी सभाका निश्चत दिन भी आपहुंचता है दर २ के हजारोमाइ क्या विद्वान क्या धनाड्य सभी बड़ी धामधूपो पधारते है और उस समय जो जो आडम्बर किये जाते हैं वो सभी आप लोग देख आये हैं सोता लिखने की आवश्यक्ता नही है यहां तो सिर्फ याद दिलाना है उन सभाओमें अग्रेसर ( आगेवान ) प्र. स्ताव पेश करते है पैश होते ही खव व्याख्यानो द्वारा अपनी २ सम्मति प्रकाश होती है अंतमें समर त भाई एकमत होकर . द्रढता पूर्वक को प्रस्ताव पास करलेते हैं.
यहांतकतो हुवाकार्यक्रम ठीक अब सुनये बयान आगेका . एकदम ही तखता लौटता है डिरापौन होता है कहते हुवे कलेजा मुखको आताहै लिखते हुवे हाथ थर राता है फिरभी साहस पकड
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