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આત્માન ૬ પ્રકાશ,
हमारे भाई सभाओंमें जाकर रूल पास कर आते हैं और घरपर आते ही ध्यान नहीं रखते क्या ये थोडे शर्मकी वात है क्या इन लक्षणोंसे जातिय पक्ष उभर सकता है. ___ यदि हमारे भाई विशेष परिश्रम थी न कर सकें उन्नति अवनितीका भी विचार न कर सकें तोभी कम से कम इतना तो होना उचित है किजो देख सुनकर विचारके साथ जिन प्रस्तावोंको सभामें पास कर आते हैं उसपरतो आरुढ बने रहै- --जिन प्रस्तावोंको जै ध्वनी पूर्वक अपनी जुबानसे स्वीकार कर आये है उसपर तो डटे रहै पर मेरे प्यारे घरपर आतेही सिट पिटी भुल जाते है
प्यारे मित्रो जहांतक विचार किया गया तो बहुत ही न्यून भाग ऐसा है जो अपनी प्रतिज्ञाका पालन करता है अपने पास किये प्रस्तावों पर अटल है वरना बहुत भागतो प्रतिज्ञा भंग करने में ही अपनी बहादुरी समजताहै घरपर आतेही लज्या और सुना सुनाया पढा पढाया सब कुच्छ उतार कर खूटी पर धर देते है, और अपनी करी प्रतिज्ञाको ऐसा भूल जाते है मानो ये जो कुच्छ जाति य सुधारका परिश्रम हुवा उनके पिछले जन्म में हुवा था जो इस जन्ममें याद नही रहा है या समझलो किसी नशको हालतमें ये जो उतरते ही नशेके पहले किये करतव्योंकी याद नहीं रही.
क्योंकि यदि याद रहती तो जुबान से जो कह आये हैं अपनी सम्मति से जो पास करा आये है उसपर आवश्य अटल बने रहते और अपनी प्रतिज्ञाका पालन करते क्योंकि बचन देकर पी
छै फिरना काम अधम जीवोंका होताहै और हमारे भाई चिकने चुपडे चहरे वाले सफेद पोश मीठी २ वातें बनाने वाले काहेको इस दोपमें शामिल हो सकते है
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