Book Title: Atmanand Prakash Pustak 006 Ank 06
Author(s): Motichand Oghavji Shah
Publisher: Jain Atmanand Sabha Bhavnagar

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Page 13
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हमारी ती या नही होती. १33 नितिका कारण भीहोताहै यदि उन सबको एक दाग लिखा जाय तो लेख बहुत कुच्छ बढ जाता है और समाचार पत्रमें इतनी जगह नः होनसे शनः शनः प्रकट करनका विचार निश्चय किया है. विचार कीजये भारत वर्ष ही नहीं अन्यत्र दरों ने भी जिम जिस समय उन्नति प्राप्त की है वो किस प्रकारकी है किसीने घर बठेही उन्नति नहीं की किन्तु सभाममाज मंडली द्वारा ही विचार निश्चत करके की है-सभी लोग देशमें एकसे विद्वान नहीं हुवा करते सभीको जानिये सुधारका लक्ष एकदम प्रगट नही हुदा करता आवश्य कुच्छ विशेषता गौणता सवमें होती है. जो महाश्य विद्वान श्रेणी में अग्रेसर होते हैं जातिय सुधारमें अग्रसर होते हैं. सभाओं द्वारा अपनी सम्मति प्रगट करते हैं जो महाश्य अपनी जातिय सुधारकी सम्मति सम्नेको एकत्र होते हैं. चाहै भले ही वो विचार पह से उनके समझमें नः आये हों परन्तु जब प्रश्न खडे हो जाते हैं, तो सारे ही मावधान हो जाते हैं और अपनी शक्ति अनुसार बहुत कुच्छ दिमागी जोर खर्च करके अपनी २ सम्मति प्रकाश करने लगते हैं. उस सवय किमीकी सम्मति कैसी भी हो उससे हमें कुच्छ प्रयोजन नही पर अंत में बड़ी भारी बाहस करके सारे लोग एक बात निश्चय कर लेते हैं और एक मत होकर जय ध्यानपूर्वक उम प्रस्तावको पास करलेते हैं और उसी ममय उसकी प्रतिया करके मानो मेरू पर्वतकी भांति अडिग हो जाते हैं घर पहुंचते ही उन्हीं प्रस्तावों के अनुसार काम करते हैं और सगे सम्धी कुटुम्ब परिवार मित्र वर्ग सभीको वोही उपदेश मुनाते हुवे अपने पास किये प्रस्तावोंपर चलनेका उपदेश देत हैं केवल उपदेश ही नहीं किन्तु जहांतक उनकी पार वसाती है चाहै मत कष्ट For Private And Personal Use Only

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