Book Title: Atmanand Prakash Pustak 006 Ank 05 Author(s): Motichand Oghavji Shah Publisher: Jain Atmanand Sabha Bhavnagar View full book textPage 1
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्री हामी છે આત્માનઃપ્રકાશ. હું हो . આત્મવૃત્તિ નિર્મલ કરે, આપે તત્વ વિકાસ આમાને આરામ કે, આભાનન પ્રકાશ. પુસ્તક૬ , વિક્રમ સંવત ૧૯૬૫ માગશર. અંક પ. महा मुनिराज श्री विजयानंदसूरिकी मीठी प्रसादी. जिस प्राणीकुं आत्मबोध नही हुवा है सो प्राणी यद्यपि मनुष्य देहवाला है तोभी तिसकुं शास्त्रकार ज्ञानी पुरुषो तो शृंगपुच्छतें रहित पशुहीज कहते है, क्युंके तिसकी आहार, निदा, भय, अरु मैथुन आदि क्रिया पशुतुल्यही होती है. जिस प्राणिकुं तत्त्ववृतिसे आत्मवोध होजाता है, तिस्से सिद्धिगति अर्थात् मोक्षकी प्राप्ती दूर नही है. जब तलक आत्मबोध नही होता है तब तलकहो सांसारीक विषय मुखमें लीन रहेता है; जव सकल सुखका निधान रुप आत्मबोध होजावे तब प्राणि-सच्चिदानंद पूर्ण ब्रह्म स्वरूपअांत ज्ञान अनंत-दर्शन-अनंत सुख-अरु अनंत शक्तिमान् होजाता है, अरु मोक्ष मेहेलमें अतींद्रिय सुखका आस्वादन करता है. For Private And Personal Use OnlyPage Navigation
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