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बौद्ध कहता है कि विशेष का अनुभव होने पर सामान्य की स्मृति हो जाती है, उस पर विचार।
२७४ ज्ञान सविकल्प ही है ऐसा जैनाचार्य सिद्ध करते हैं।
२७६ प्रत्यक्ष आदि से विरुद्ध भी सप्तभंगी हो सकती है क्या ?
२८६ सप्तभंगी ही क्यों अनन्तभंगो भी बनाइये, क्या बाधा है ? अन्तिम तीन भंग वस्तु के धर्म नहीं हैं ? इस पर विचार । किस किस अपेक्षा से सातों भंग होते हैं उसका स्पष्टीकरण । वक्तव्य को भी आठवां भंग मानों, क्या हानि है ? बौद्ध आत्मा को अन्वयरूप नहीं मानता है उस पर विचार ।
२६३ सांख्य सभी वस्तुओं को सत्रूप ही मानता है उस पर विचार ।
२६८ मीमांसक सभी वस्तुओं को भावाभावात्मक मानता है, किन्तु परस्पर निरपेक्ष मानता है, अतः उसका अभिमत भी दोषास्पद है। बौद्ध सभी वस्तु को सर्वथा अवक्तव्य ही मानता है उसका विचार । शब्दाद्वैतवादी का खण्डन ।
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३०७ प्रत्येक वस्तु कथंचित् ही अवाच्य है सर्वथा नहीं। वस्तु का वस्तुत्व क्या है ?
३०६ स्वरूप में भिन्न स्वरूप का अभाव होने से वस्तव्यवस्था कैसे बन सकेगी? नयायिक की इस शंका पर विचार।
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जीवादि वस्तु का स्वरूप क्या है ?
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जीवादि द्रव्यों का स्वद्रव्य क्या है एवं परद्रव्य क्या है ?
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वस्तु का अपना सत्व ही पर का असत्व है अत: स्व पर चतुष्टय की अपेक्षा से सत्वासत्व व्यवस्था कैसे होगी? इस शंका का समाधान ।
३१५ एक ही वस्तु में सत्त्व-असत्त्व दोनों धर्म परस्पर विरुद्ध हैं इस पर विचार । एक ही वस्तु में सामान्य-विशेष, सत्असत् आदि धर्म परस्पर-विरुद्ध होते हुये भी निरगलरूप से सम्भव हैं इस प्रकार से जैनाचार्य कहते हैं ।
३२१ वस्तु स्वपर से ही सत्-असत् रूप है अन्य किसी प्रकार से नहीं ऐसा क्यों ?
३२६ "वक्षौ" इत्यादि शब्द दो वक्ष आदि को कैसे कहते हैं ? इस पर विचार ।
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