Book Title: Ashtaprakari Puja
Author(s): Ajaysagar
Publisher: Z_Aradhana_Ganga_009725.pdf

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Page 3
________________ जल(पानी) का प्रक्षाल करते समय बोलने का दोहा ज्ञान कळश भरी आतमा, समतारस भरपूर; श्री जिनने नवरावतां, कर्म थाये चकचूर! २. चंदन पूजा चंदन पूजा का रहस्य हे प्रभु! परमशीतलता हमारे हृदय में, हमारे भीतर में आए. अपनी आत्मा को शीतल करने के लिए वासनाओं से मुक्त होने के लिए प्रभुजी की चन्दन पूजा उत्तम भावों से करता हूँ. नमोऽर्हत्सिद्धाचार्योपाध्यायसर्वसाधुभ्यः ॐ ह्रीं श्रीं परमपुरुषाय परमेश्वराय जन्म-जरा-मृत्यु-निवारणाय श्रीमते जिनेन्द्राय चंदनं यजामहे स्वाहा. (२७ डंके बजाये) बरास विलेपन पूजा के समय बोलने का दूहा शीतल गुण जेहमां रह्यो, शीतल प्रभु मुख रंग, आत्मशीतल करवा भणी, पूजो अरिहा अंग. (चंदन से विलेपन-पूजा करनी चाहिये और फिर केसर से नव अंगों की पूजा करनी चाहिये. नाखून केसर में न डूबे और नाखून का प्रभुजी को स्पर्श न हो इसका ध्यान रखना चाहिए.) प्रभुजी के नव अंगो पर पूजा करने के दोहेअंगूठाः जलभरी संपुट पत्रमा, युगलिक नर पूजंत, ऋषभ चरण अंगूठडे, दायक भवजल अंत. घुटनेः जानुबळे काउस्सग्ग रह्या, विचर्या देश विदेश, खडा खडा केवळ लह्यु, पूजो जानु नरेश. कलई: लोकांतिक वचने करी, वरस्यां वरसीदान, कर कांडे प्रभु पूजना, पूजो भवि बहुमान. मान गयुं दोय अंशथी, देखी वीर्य अनंत, भुजा बले भवजल तर्या, पूजो खंध महंत. मस्तक: सिद्धशिला गुण ऊजळी, लोकांते भगवंत, वसिया तिणे कारण भवि, शिरशिखा पूजंत. खभाः Pा की मेवा न करने वाली बटु को यह अधिकार नहीं की वह अपनी भाभी ने माँ की सेवा करने को कहे.*

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