Book Title: Ashtaprakari Puja Author(s): Ajaysagar Publisher: Z_Aradhana_Ganga_009725.pdf View full book textPage 1
________________ & अष्टप्रकारी पूजा की तीन लोक के नाथ एसे तीन जगत के देव, परमकृपालु, जिनेन्दर परमात्मा पूजा करते समय सात प्रकार से शुद्धि रखने का खास ध्यान रखना चाहिये. ये सात शुद्धि निम्नोक्त है- (१) अंगशुद्धि, (२) वस्त्रशुद्धि, (३) मनःशुद्धि, (४) भूमिशुद्धि, (५) उपकरण शुद्धि, (६) द्रव्यशुद्धि, (७) विधिशुद्धि. प्रभु एक पूजा अनेक .... १८ १. जलपूजा २. चंदन पूजा ३. पुष्प पूजा ५. दीपक पूजा ६. अक्षत पूजा ७. नैवेद्य पूजा अष्टप्रकारी पूजा के स्थान तीन पूजा.... दो पूजा... तीन पूजा..... गर्भगृह के बाहर.... पूजात्रिक जिनबिंब के उपर जिनबिंब के आगे रंगमंडप में चौकी के ऊपर... ४. धूप पूजा ८. फल पूजा अंग पूजा जलपूजा, चंदनपूजा, पुष्पपूजा, परमात्मा के अंग को स्पर्श कर जो पूजा की जाती है उसे अंग पूजा कहते हैं, जीवन में आते विघ्नों के नाश करने वाली और महाफल देने वाली इस पूजा को विघ्नोपशमिनी पूजा कहते हैं. अग्र पूजा धूप पूजा, दीपक पूजा, अक्षत पूजा, नैवेद् पूजा, फल पूजा. परमात्मा की सन्मुख खड़े रहकर जो पूजा की जाय वह अग्र पूजा कहलाती है. मोक्षमार्ग की साधना में सहायक ऐसी सामग्री का अभ्युदय प्राप्त करानेवाली इस पूजा को अभ्युदयकारिणी पूजा कहते हैं. भाव पूजा- स्तुति, चैत्यवंदन, स्तवन, गीत, गान, नृत्य .... जिसमें किसी द्रव्य की जरूरत नहीं है, ऐसी आत्मा को भावविभोर करनेवाली पूजा को भाव पूजा कहते हैं. मोक्षपद की प्राप्ति अर्थात् संसार से निवृत्ति देने वाली इस पूजा को निवृत्तिकारिणी पूजा कहते हैं. कारण और बहाना, दोनों के बीच का सूक्ष्म भेद है. ना है तो सफलता व निष्फलता में वह स्पष्ट दिख जाएगा.Page Navigation
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