Book Title: Ashtaprakari Puja
Author(s): Ajaysagar
Publisher: Z_Aradhana_Ganga_009725.pdf

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Page 7
________________ २४ अमे धूपनी पूजा करीए रे, ओ मन मान्या मोहनजी, प्रभु! ध्यानघटा प्रगाटावीए रे! ओ मन मान्या मोहनजी! प्रभु! अमे धूपघटा अनुसरीये रे, ओ मन मान्या मोहनजी, प्रभु! नहीं कोई तमारी तोले रे, ओ मन जान्या मोहनजी, प्रभु! अंते छे शरण तमारुं रे, ओ मन मान्या मोहनजी, (गर्भगृह के बाहर खड़े रहकर शुद्ध और सुगंधी धूप से धूप पूजा करनी चाहिये.) ५. दीपक पूजा दीपक पूजा का रहस्य हे परमात्मा! ये द्रव्य दीपक का प्रकाश धारण कर मैं आपके पास आया हूँ! मेरे अन्तर मन में केवलज्ञान रूपी भाव दीपक प्रगट हो और अज्ञान का अंधकार दूर हो जाय, ऐसी प्रार्थना करता हूँ. जिस प्रकार यह दीपक चारों ओर प्रकाश फैलाता है उसी प्रकार मैं भी अपनी आत्मा की अज्ञानता को दूर कर आत्मा में ज्ञान का प्रकाश करना चाहता हूँ. नमोऽर्हत्सिद्धाचार्योपाध्यायसर्वसाधुभ्यः ॐ ह्रीं श्रीं परमपुरुषाय परमेश्वराय जन्म-जरा-मृत्यु-निवारणाय श्रीमते जिनेन्द्राय दीपं यजामहे स्वाहा. (२७ डंके बजाये) (गर्भगृह के बाहर खड़े रह कर दीपक पूजा करनी चाहिये.) ६. अक्षत पूजा अक्षत पूजा का रहस्य हे प्रभु! जैसे अक्षत फिर से उगता नहीं है, वैसे ही इस संसार में मेरा पुनः जन्म न हो. अक्षत अखण्ड है वैसे मेरी आत्मा विविध जन्मों के पर्यायों से रहित अखण्ड शुद्ध ज्ञानमय अशरीरी हो.. स्वस्तिक के स्थान पर सुंदर गहुंली भी आलेखित की जा सकती है. (थाली में चावल ले कर बोलने का दोहा) नमोऽर्हत्सिद्धाचार्योपाध्यायसर्वसाधुभ्यः अधर्ममित्र हमारे अनादि कुसंस्कारों को ज्वाला की तरह भड़का देते है. बच के रहो.४

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