Book Title: Ashtaprakari Puja
Author(s): Ajaysagar
Publisher: Z_Aradhana_Ganga_009725.pdf

View full book text
Previous | Next

Page 2
________________ १९ धूप, दीपक आदि अग्र पूजा करने के बाद अंग पूजा करनी उचित नहीं है. और अंत में चैत्यवंदन की क्रिया अर्थात् भाव पूजा करने के बाद अंग या अग्र पूजा करना उचित नहीं हैं. अंग पूजा एवं अग्र पूजा करने के बाद अंत में भाव पूजा करने का शास्त्रोक्त क्रम है उसे निभाना चाहिये. आठ कर्मों का क्षय करनेवाली ऐसी परमात्मा की अष्टप्रकारी पूजा विधि १. जल पूजा पंचामृत- शुद्ध दूध, दहीं, घी, मिश्री और जल का मिश्रण ( दूसरे भी शुद्ध सुगंधी द्रव्य उसमें मिलायें जा सकते हैं.) जल पूजा का रहस्य पाप कर्म रूपी मेल को धोने के लिए प्रभु की जल पूजा की जाती है. हे परमात्मन्! समता रूपी रस से भरे ज्ञान रूपी कलश से प्रभु की पूजा के द्वारा भव्य आत्माओं के सर्व पाप दूर हो. हे प्रभु! आप के पास सारी दुनिया की श्रेष्ठ सुख-समृद्धि है वैसी ही सुख-समृद्धि हमें प्राप्त हो. सारी मलीनता दूर हो. आत्मा के उपर का मल प्रभु प्रक्षाल से धो लिया है; हृदय में अमृत को भरा है. नमोऽर्हसिद्धाचार्योपाध्याय सर्वसाधुभ्या (यह सूत्र सिर्फ पुरुषों को हर पूजा के पहले बोलना चाहिये) (कलश दो हाथों में लेकर बोलने का मंत्र ) ॐ ह्रीं श्रीं परमपुरुषाय परमेश्वराय जन्म-जरा-मृत्यु-निवारणाय श्रीमते जिनेन्द्राय जलं यजामहे स्वाहा (२७ डंके बजाये) दूध का (पंचामृत का ) प्रक्षाल करते समय बोलने के दोहेमेरुशिखर नवरावे हो सुरपति, मेरुशिखर नवरावे जन्मकाळ जिनवरजी को जाणी, पंचरूप करी आवे. हो.... रत्नप्रमुख अढजातिना कळशा औषधि चूरण मिलावे: क्षीरसमुद्र तीर्थोदक आणी स्नात्र करी गुण गावे, हो.... एणी परे जिन प्रतिमा को न्हवण करी, बोधिबीज मानुं वावे; अनुक्रमे गुण रत्नाकर फरसी, जिन उत्तम पद पावे हो... P सु. १ सु. २ सु. ३ सत्य के अस्वीकार से यह कर कोई दुःखदायी कुडान नहीं. सत्य के स्वीकार से बढ़कर कोई सुखदायी मित्र नहीं.

Loading...

Page Navigation
1 2 3 4 5 6 7 8 9