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अष्टपाहुड
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आहारो य सरीरो, इंदियमण आणपाणभासा य।
पज्जत्तिगुणसमिद्धो, उत्तमदेवो हवइ अरहो।।३३।। आहार, शरीर, इंद्रिय, मन, श्वासोच्छ्वास और भाषा इन पर्याप्तिरूप गुणोंसे समृद्ध उत्तम देव अर्हत होता है।।३३।।
पंचवि इंदियपाणा, मणवयकाएण तिण्णि बलपाणा।
आणप्पाणप्पाणा, आउगपाणेण होंति तह दह पाणा।।३४।। पाँचों इंद्रियाँ, मन वचन कायकी अपेक्षा तीन बल तथा आयु प्राणसे सहित श्वासोच्छ्वास ये दश प्राण होते हैं।।३४ ।।
मणुयभवे पंचिंदिय, जीवट्ठाणेस होइ चउदसमे।
एहे गुणगणजुत्तो, गुणमारूढो हवइ अरहो।।३५।। मनुष्यपर्यायमें पंचेंद्रिय नामका जो चौदहवाँ जीवसमास है उसमें इन गुणोंके समूहसे युक्त, तेरहवें गुणस्थानपर आरूढ मनुष्य अर्हत होता है।।३५ ।।
जरवाहिदुक्खरहियं, आहारणिहारवज्जियं विमलं। सिंहाण खेल सेओ, णत्थि दुगुंछा य दोसो य।।३६।। दस पाणा पज्जत्ती, अट्ठसहस्सा य लक्खणा भणिया। गोखीरसंखधवलं, मंसं रुहिरं च सव्वंगे।।३७।। एरिसगुणेहिं सव्वं, अइसयवंतं सुपरिमलामोयं ।
ओरालियं च कायं, णायव्वं अरिहपुरिसस्स।।३८ ।। जो बुढ़ापा, रोग आदिके दु:खोंसे रहित हैं, आहार नीहारसे वर्जित हैं, निर्मल हैं और जिसमें नाकका मल (श्लेष्म), थूक, पसीना, दुर्गंध आदि दोष नहीं हैं।।३६।।
जिनके १० प्राण, ६ पर्याप्तियाँ और १००८ लक्षण कहे गये हैं वे तथा जिनके सर्वांगमें गोदुग्ध और शंखके समान सफेद मांस और रुधिर है।।३७ ।।
इस प्रकारके गुणोंसे सहित तथा समस्त अतिशयोंसे युक्त अत्यंत सुगंधित औदारिक शरीर अर्हत पुरुषके जानना चाहिए। यह द्रव्य अर्हतका वर्णन है।।३८ ।।
मयरायदोसरहिओ, कसायमलवज्जिओ य सुविसुद्धो।
चित्तपरिणामरहिदो, केवलभावे मुणेयव्वो।।३९।। केवलज्ञानरूप भावके होनेपर अर्हत मद राग द्वेषसे रहित, कषायरूप मलसे वर्जित, अत्यंत शुद्ध