Book Title: Ashtapahuda
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 79
________________ ३३६ कुदकुद-भारता सव्वे वि य परिहीणा, रूवविरूवा वि वदिदसुवया वि। सीलं सेसु सुसीलं, सुजीविदं माणुसं तेसिं।।१८।। जो सभीमें हीन हैं अर्थात् हीन जातिके हैं, रूपसे विरूप हैं अर्थात् कुरूप हैं और जिनकी अवस्था बीत गयी है अर्थात् वृद्धावस्थासे युक्त हैं -- इन सबके होनेपर भी जिनके सुशील है अर्थात् जो उत्तम शीलके धारक हैं उनका मनुष्यपना सुजीवित है -- उनका मनुष्यभव उत्तम है।। भावार्थ -- जाति, रूप तथा अवस्थाको न्यूनता होनेपर भी उत्तम शील मनुष्यके जीवनको सफल बना देता है। इसलिए सुशील प्राप्त करना चाहिए।।१८।। जीवदया दम सच्चं, अचोरियं बंभचेरसंतोसे। सम्मइंसणणाणं, तओ य सीलस्स परिवारो।।१९।। जीवदया, इंद्रियदमन, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य, संतोष, सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्तप ये सब शीलके परिवार हैं।।१९।। सीलं तवो विसुद्धं, सणसुद्धी य णाणसुद्धी य। ___ सीलं विसयाण अरी, सीलं मोक्खस्स सोपाणं ।।२०।। शील विशुद्ध तप है, शील दर्शनकी शुद्धि है, शील ही ज्ञानकी शुद्धि है, शील विषयोंका शत्रु है और शील मोक्षकी सीढ़ी है।।२०।। जह विशुद्ध लुद्धविसदो, तह थावरजंगमाण घोराणं। सव्वेसि पि विणासदि, विसयविसं दारुणं होई।।२१।। जिस प्रकार विषय, लोभी मनुष्यको विष देनेवाले हैं -- नष्ट करनेवाले हैं उसी प्रकार भयंकर स्थावर तथा जंगम -- त्रस जीवोंका विष भी सबको नष्ट करता है, परंतु विषयरूपी विष अत्यंत दारुण होता है। भावार्थ -- जिस प्रकार हाथी, मीन, भ्रमर, पतंग तथा हरिण आदिके विषय उन्हें विषकी भाँति नष्ट कर देते हैं उसी प्रकार स्थावरके विष मोहरा, सोमल आदि और जंगम अर्थात् साँप, बिच्छू आदि भयंकर जीवोंके विष विष सभीको नष्ट करते हैं। इस प्रकार जीवोंको नष्ट करनेकी अपेक्षा विषय और विषमें समानता है, परंतु विचार करनेपर विषयरूपी विष अत्यंत दारुण होता है। क्योंकि विषसे तो जीवका एक भव ही नष्ट होता है और विषयसे अनेक भव नष्ट होते हैं।।२१।। बार एकम्मि य जम्मे, मरिज्ज विसवेयणाहदो जीवो। विसयविसपरिहया णं, भमंति संसारकांतारे।।२२।। विषकी वेदनासे पीड़ित हुआ जीव एक जन्ममें एक ही बार मरणको प्राप्त होता है परंतु विषयरूपी

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