Book Title: Arya Sthulabhadra aur Kosha
Author(s): Mohanlal C Dhami, Dulahrajmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 12
________________ १. रूप का सत्त्व मगध के महामंत्री शकडाल का भव्य प्रासाद । शुक्लपक्ष। रात्रि का समय। ज्योत्स्ना के प्रवाह में स्नात वह प्रासाद मर्त्यलोक में आए हुए किसी देवविमान के सदृश सुशोभित हो रहा था। उस भव्य प्रासाद से सटकर मन्दाकिनी बह रही थी। पाटलीपुत्र नगर चन्द्रमा की किरणों के साथ प्रमोद करता हुआ सुशोभित हो रहा था। मन्दाकिनी की निर्मल देहयष्टि उस नगर की शोभा में संगीत का संचार कर रही थी। गंगा के शांत और विशाल जल-तल पर एक रत्नजटित नौका मंद-मंद गति से चल रही थी। उस नौका के रत्न चन्द्रमा की चांदनी में चमक रहे थे। उनकी चमक से नौका की कलात्मकता स्पष्ट दृग्गोचर हो रही थी। रात्रि का दूसरा प्रहर प्रारम्भ हो रहा था। प्रशांत चन्द्र अपने प्राणों में बसने वाली प्राणसुधा-नवयौवन की प्रेरणा को समूचे जगत् पर बरसा रहा था। चन्द्रमा की शांत और स्निग्ध किरणों के समान पाटलीपुत्र नगर भी शांत था और गंगा का देह भी अपनी शोभा को बिखेर रहा था। उस शांत और नीरव वातावरण में मंत्री के प्रासाद से वीणा के सुमधुर स्वर चारों दिशाओं में फैल रहे थे। उस समय ऐसा लग रहा था, कामदेव का दूत वसन्त स्वर का रसथाल ले गंगा के तट पर नाच रहा हो। मानो कि कोई नववध लज्जा से मंथर और कंपित चरणों से अपने प्रियतम के शयनकक्ष की ओर जा रही हो। मानो कि आशा और परम आनन्द का मधुर संदेश संसार की चारों दिशाओं में मृदु और गम्भीर भाव से प्रसृत हो रहा हो । गंगा के रूपेरी जल Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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