Book Title: Ardhmagadhi Agam Sahitya Evam Acharang Sutra Author(s): Premsuman Jain Publisher: Premsuman Jain View full book textPage 2
________________ तथा रहन-सहन का परिज्ञान प्रथमानुयोग के अध्ययन से प्राप्त होता है। व्यक्ति सांसारिक तथा पारमार्थिक सुख चाहता है तो उसे प्रथमानुयोगिक ग्रंथ- जैसे-पुराण, चरित्र, नाटक चम्पू, कथा-कोष आदि का अध्ययन करना चाहिये इससे उसे ऐहिक तथा पारमार्थिक दोनों प्रकार के सुख मिल सकेंगे। 2-करणानुयोग इस अनुयोग में जीव के परिणामों का विशेष रूप से वर्णन किया गया है। इसका दूसरा नाम गणितानुयोग भी है अर्थात् जिस अनुयोग में गणित के प्रयोगों द्वारा विषय-वस्तु को समझाया गया हो वह करणानुयोग है। लोक और अलोक के विभाजन का उत्सर्पिणी और अवसर्पिणी काल के छ: छ: विभागों के परिवर्तनों का और चातुर्गति का दर्पण के समान यथावत् ज्ञान करानेवाला करणानुयोग है। 3-द्रव्यानुयोग द्रव्यानुयोग जीवन और अजीव-रूप उत्तम तत्वों को, पुण्य, पाप, बंध, मोक्ष तथा द्रव्यश्रुत और भावश्रुत को प्रकाशित करता है। द्रव्यानुयोग की कसौटी पर कसकर ही वस्तु-तत्व को समझा जाता है, जिससे मोक्ष मार्ग में कहीं पर भी अटक न हो और मार्ग प्रशस्त होता चला जाय। 4-चरणानुयोग चरणानुयोग का वह भाग है जिसमें गृहस्थ-धर्म तथा मुनिधर्म का पूर्णतया विवेचन किया गया हो। आचार्य समन्तभद्र ने चरणानुयोग का लक्षण बताया है-जिस अनुयोग (शास्त्र विशेष) में घर में रहनेवाले गृहस्थों और गृह-त्यागियों, मुनियों के चरित्र की उत्पत्ति, उसकी वृद्धि तथा रक्षा का विवेचन हो उसको चरणानुयोग कहते हैं। आचरण करने को चारित्र कहते हैं। यह आचरण मिथ्या और सम्यक् दोनों ही प्रकार का होता है। जब तक जीवन को वस्तु-तत्व की सच्ची श्रद्धा नहीं होती तब तक उसका आचरण सम्यक् नहीं होता किन्तु जब उसको वस्तुतत्व की सच्ची प्रतीत व सच्चा ज्ञान होता है तब उसका आचरण सम्यक् होता है। " जैनों के लिए आगम जिनवाणी है, आप्तवचन है, उनके धर्म-दर्शन और साधना का आधार है। यद्यपि वर्तमान में जैन धर्म का दिगम्बर सम्प्रदाय उपलब्ध अर्धमागधी आगमों को प्रमाणभूत नहीं मानता है, क्योंकि उसकी दृष्टि में इन आगमों में कुछ ऐसा प्रक्षिप्त अंश है, जो उनकी मान्यताओं के विपरीत है। हमारी दृष्टि में चाहे वर्तमान में उपलब्ध अर्धमागधी आगमों में कुछ प्रक्षिप्त अंश हो या उनमें कुछ परिवर्तन परिवर्धन भी हुआ हो, फिर भी वेPage Navigation
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