Book Title: Ardhmagadhi Agam Sahitya Evam Acharang Sutra
Author(s): Premsuman Jain
Publisher: Premsuman Jain

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Page 9
________________ उपासकाध्ययन (उपासगदसाओ) इस श्रुतांग में जैसा नाम में ही सूचित किया गया है, दस अध्ययन हैं और उनमें क्रमशः आनन्द, कामदेव, चुलनीप्रिय, सुरादेव , चुल्लशतक, कुंछकोलिय, सद्दालपुत्र, महाशतक, नंदिनीप्रिय और सालिहीप्रिय इन दस उपासकों को अपने धर्म के परिपालन में कैसे-कैसे विघ्नों और प्रलोभनों का सामना करना पड़ता है, उनका विवरण दिया गया है।। अन्तकृददशा (अंतगडदसाओ) इस श्रुतांग में आठ वर्ग हैं, इनमें ऐसे महापुरुषों के कथानक उपस्थित किये गये हैं, जिन्होंने घोर तपस्या कर अन्त में निर्वाण प्राप्त किया और इसी के कारण वे अन्तकृत कहलाये। अनुत्तरोपपादिकदशा (अणुत्तरोवाइय दसाओ) इस श्रुतांग में कुछ ऐसे महापुरुषों का चरित्र वर्णित है, जिन्होंने अपनी धर्म-साधना के द्वारा मरणकर उन अनुत्तर स्वर्ग विमानों में जन्म लिया जहां से पुनः केवल एक बार ही मनुष्य योनि में आने से मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है। प्रश्नव्याकरण (पण्ह-वागरण) यह श्रुतांग दो खंडों में विभाजित है। प्रथम खंड में पांच आस्त्रव द्वारों का वर्णन है, और दूसरे में पांच संवर द्वारों का। पांच आस्रव द्वारों में हिंसादि-पांच पापों का विवेचन है और संवरद्वारों में उन्हीं के निषेध रूप अहिंसादि व्रतों का। इस प्रकार इसमें उक्त पांच व्रतों का सुव्यवस्थित वर्णन पाया जाता है। विपाकसूत्र (विवागसुयं) इस श्रुतांग में दो श्रुतस्कंध हैं, पहला दुःख विपाक विषयक और दूसरा सुख-विपाक विषयक। प्रथम श्रुत-स्कंध दूसरे की अपेक्षा बहुत बड़ा है। प्रत्येक में दस-दस अध्ययन हैं, जिनमें कमशः जीव के कर्मानुसार दुःख और सुख रूप कर्मफलों का वर्णन किया गया है। नाना व्याधियों के औषधि उपचार का विवरण भी मिलता है। हमें प्राचीन काल की नाना सामाजिक विधियों, मान्यताओं एवं अन्धविश्वासों का अच्छा परिचय इस ग्रन्थ में प्राप्त होता है। इस प्रकार सामाजिक अध्ययन के लिये यह श्रुतांग महत्वपूर्ण है। दृष्टिवाद (दिट्ठवाद) ___ यह श्रुतांग अब नहीं मिलता। समवायांग के अनुसार इसके पांच विभाग थे-परिकर्म, सूत्र, पूर्वगत, अनुयोग और चूलिका। प्रतीत होता है कि परिकर्म के अन्तर्गत लिपि-विज्ञान और गणित का विवरण था। दृष्टिवाद का पूर्वगत विभाग सबसे अधिक विशाल और

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