________________ महत्वपूर्ण रहा है। अनुयोग नामक दृष्टिवाद के चतुर्थभेद के मूलप्रथमानुयोग और गंडिकानुयोग- ये दो भेद बतलाये गये हैं। प्रथम में अरहन्तों के गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान और निर्वाण संबंधी इतिवृत्त समाविष्ट किया गया था, और दूसरे में कुलकर, चक्रवर्ती, बलदेव, वासुदेव आदि अन्य महापुरुषों के चरित्र का। इस प्रकार अनुयोग को प्राचीन जैन पुराण कहा जा सकता है। आगमों का टीका साहित्य आगम ग्रन्थों से सम्बद्ध अनेक उत्तरकालीन रचनाएं हैं, जिनका उद्देश्य आगमों के विषय को संक्षेप या विस्तार से समझाना है। ऐसी रचनाएं चार प्रकार की हैं, जो नियुक्ति (णिज्जजुत्ति), भाष्य (भास), चूर्णि (चुण्णि) और टीका कहलाती हैं। ये रचनाएं भी आगम का अंग मानी जाती हैं, और उनके सहित यह साहित्य पंचांगी आगम कहलाता है इनमें नियुक्तियां अपनी भाषा, शैली व विषय की दृष्टि से सर्वप्राचीन हैं। ये प्राकृत पद्यों में लिखी गई हैं और संक्षेप में विषय को प्रतिपादित करती हैं। इनमें प्रसंगानुसार विविध कथाओं व दृष्टान्तों के संकेत मिलते हैं, जिनका विस्तार हमें टीकाओं में प्राप्त होता है। भाष्य भी प्राकृत गाथाओं में रचित संक्षिप्त प्रकरण हैं। ये अपनी शैली में नियुक्तियों से इतने मिलते हैं कि बहुधा इन दोनों का परस्पर मिश्रण हो गया है, जिसका पृथक्करण असंभव-सा प्रतीत होता है। चूणियां भाषा व रचना शैली की दृष्टि से अपनी विशेषता रखती हैं। वे गद्य में लिखी गई हैं और भाषा यद्यपि प्राकृत-संस्कृत मिश्रित है, फिर भी इनमें प्राकृत की प्रधानता है। टीकाएं अपने नामानुसार ग्रन्थों को समझने-समझाने के लिये विशेष उपयोगी हैं। ये संस्कृत में विस्तार से लिखी गई हैं, किन्तु कहीं-कहीं और विशेषतः कथाओं में प्राकृत का आश्रय लिया गया है। प्रतीत होता है कि जो कथाएं प्राकृत में प्रचलित थीं, उन्हें यहां जैसे का तैसा उद्धृत कर दिया है।