Book Title: Ardhmagadhi Agam Sahitya Evam Acharang Sutra Author(s): Premsuman Jain Publisher: Premsuman Jain View full book textPage 8
________________ सूत्रकृतांग (सूयगड) यह ग्रन्थ भी दो श्रुतस्कंधों में विभक्त है, जिनके पुनः कमशः 16 और 7 अध्ययन हैं। ग्रन्थ में जैनदर्शन के अतिरिक्त अन्य मतों व वादों का प्ररूपण किया गया है, जैसे-कियावाद, अक्रियावाद, नियतिवाद, अज्ञानवाद, जगत्कर्तत्ववाद, आदि। द्वितीय श्रुतस्कंध में जीव-शरीर के एकत्व, ईश्वर-कर्तृत्व व नियतिवाद आदि मतों का खंडन किया गया है। आहार व भिक्षा के दोषों का निरूपण हुआ है। प्राचीन मतों, वादों व दृष्टियों की दृष्टि से यह श्रुतांग बहुत महत्वपूर्ण है। भाषा की दृष्टि से भी यह विशेष प्राचीन सिद्ध होता है। स्थानांग (ठाणांग) यह श्रुतांग दस अध्ययनों में विभाजित है, और उसमें सूत्रों की संख्या एक हजार से ऊपर है। इसकी रचना पूर्वोक्त दो श्रुतांगों से भिन्न प्रकार की है। यहां प्रत्येक अध्ययन में जैन सिद्धान्तानुसार वस्तु-संख्या गिनाई गई है- जैसे उत्तमपुरुष भी तीन प्रकार हैंधर्मपुरुष, भोगपुरुष और कर्मपुरुष। अर्हन्त धर्मपुरुष हैं, चकवर्ती भोगपुरुष हैं और वासुदेव कर्मपुरुष। समवायांग इस श्रुतांग में 275 सूत्र हैं। स्थानांग के अनुसार यहां भी संख्या के कम से वस्तुओं का निर्देश और कहीं-कहीं उनके स्वरूप व भेदोपभेदों का वर्णन किया गया है। 211वें से 227वें सूत्र तक आयारांग आदि बारहों अंगों के विभाजन और विषय का संक्षिप्त परिचय दिया गया है। यहां इन रचनाओं को द्वादशांग गणिपिटक कहा गया है। इसके पश्चात् जीवराशि का विवरण करते हुए इसमें स्वर्ग और नरक भूमियों का वर्णन पाया जाता है। भगवती व्याख्याप्रज्ञप्ति (वियाह-पण्णन्ति) इसे संक्षेप में केवल भगवती नाम से भी उल्लिखित किया जाता है। इस समस्त रचना का सूत्र-कम से भी विभाजन पाया जाता है, जिसके अनुसार कुल सूत्रों की संख्या 867 है। इस प्रकार यह अन्य श्रुतांगों की अपेक्षा बहुत विशाल है। इसकी वर्णन शैली प्रश्नोत्तर रूप में है। गौतम गणधर जिज्ञासा-भाव से प्रश्न करते हैं, और स्वयं तीर्थंकर महावीर उत्तर देते हैं। ज्ञातृधर्मकथा (नायाधम्मकहाओ) यह आगम दो श्रुतस्कंधों में विभाजित है। अध्ययनों में भिन्न-भिन्न कथानक तथा उनके द्वारा तप , त्याग व संयम संबंधी किसी नीति व न्याय की स्थापना की गई है।Page Navigation
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