Book Title: Anusandhan 2016 12 SrNo 71
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 7
________________ 5 बराबर वाकेफ होवा छतां आ बाबते अमने आश्चर्य न थतुं; केम के भगवान तीर्थंकरनो अनेकान्तनो सिद्धान्त, ज्यां सुधी अनेकान्त - दृष्टिमां परिणम्यो न होय त्यां सुधी, पोतानाथी भिन्न मान्यता, विचार के समजण धरावता लोकां प्रत्ये द्वेष अथवा अरुचि थाय तो ते स्वाभाविक होय छे, एटली समज केळवाइ गई छे. जो धर्म अने शास्त्रनां सत्य तथा तथ्य पामवां होय, प्रीछवां होय, तो संशोधननी प्रक्रिया प्रत्ये के संशोधको प्रत्ये तिरस्कार राखवो पालववो न जोइए; अने आ बन्ने सत्य तथा तथ्य अमारी पासे ज छे, अमने ज समजाय बीजाने नहि, एवं मिथ्याभिमान पण छूटी जवुं जोइए. - - आपणा अग्रणी पुरातत्त्वविदो डो. हसमुख सांकळिया तथा रमणलाल महेताने मळवानुं थयेलुं त्यारे तेओ कहता के 'अमारे तो ठीकरां - पथरामाटी बोले ते सांभळवानुं. चोपडीमां लख्युं छे माटे ते ज साचुं एम मानीने अमाराथी चलाय नहि.' आ ज वात डॉ. मधुसूदन ढांकी पण कहेता, जुदी रीते, जुदा शब्दोमां. ए लोको पहेलां प्रत्यक्ष पदार्थ - प्रमाण शोधे- मेळवे, पछी ग्रन्थोना शब्दो साथे तेनो ताळो मेळवे, अने ग्रन्थोमां कई वात असल हशे, कई वात प्रक्षेप हशे, कई वात दन्तकथा हशे, तेनो अंदाज काढता रहे. तेमना मनमां एक ज आशय रहेता होय छे : "मूळ वस्तु ज स्यवं एटली बधी श्रेष्ठ अने महत्त्वपूर्ण होय छे, जे पाछळथी चडतां गयेलां चमत्कारपूर्ण आवरणोथी ढंकाइ - दबाई गई होय छे. ते मूळ वस्तुने तथ्यने तेना मूळ रुपमां पुनः अनावृत करवुं ए ज छे संशोधननो मर्म." आम करवा जतां, क्यारेक, आस्था साथै संशोधननी अथडामण थई जाय तेवुं चोक्कस बनवानुं. परंतु आस्थानुं निकंदन काढवानुं तेमना मनमां नथी होतुं तेमनो वांधो तो अन्धश्रद्धा, अणसमज के अज्ञान सामे ज होय छे, आस्था सामे नहि, अने नहि ज. अस्तु. शी.

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