Book Title: Anusandhan 2016 12 SrNo 71
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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८
भवदावानलजीवन !, जीवनयस्थितिकार ! | त्याजितविग्रह ! विग्रहसाध्वसकाष्ठकुठार ! ॥ कुमतमतङ्गजचित्रक !, चित्रकराक्षरसौख्य ! | मम कर्माणि विदार!, विदारय विष्टपमुख्य ! ॥४॥ अवचूर्णि:- हे भवदावानलर्जीवन ! - भवः - संसार:, स एव दावानलः - भवदावानलस्तत्र भवदावानले जीवन: ( नं? ) - सलिलतुल्य:- भवदावानलजीवनः(नं?), तस्य सम्बोधनं हे भवदावानलजीवन !; हे जीवनयस्थितिकार !- जीवानां जन्तूनां नयस्थितिं रक्षणोपायं करोतीतिजीवनयस्थितिकारस्तस्य सम्बोधनं हे जीवनयस्थितिकार !; हे त्याजित विग्रह ! त्याजितस्त्यक्तो, विग्रहो- देहं येन स त्याजितविग्रहस्तस्य सम्बोधनं- हे त्याजितविग्रह !; हे विग्रहसाध्वसकाष्ठकुठार !- विग्रहःकलहः, साध्वसं भयं विग्रहाश्च साध्वसानि च - विग्रहसाध्वसानि, विग्रहसाध्वसान्येव काष्ठानि- विग्रहसाध्वसकाष्ठानि, विग्रहसाध्वसकाष्ठेषु कुठारः - विग्रहसाध्वसकाष्ठकुठारस्तस्य सम्बोधनं हे विग्रहसाध्वसकाष्ठकुठार !; हे कुमतमतङ्गजचित्रक ! - कुमता एव मतङ्गजा - हस्तिन:- कुमतमतङ्गजास्तेषु कुमतमतङ्गजेषु चित्रक इव, चित्रको - व्याघ्रः, कुमतमतङ्गजचित्रकस्तस्य सम्बोधनं- हे कुमतमतङ्गजचित्रक !; हे चित्रकराक्षरसौख्य !चित्रकरमाश्चर्यकरमक्षरसौख्यं - मोक्षसुखं विद्यते यस्य स चित्रकराक्षरसौख्यस्तस्य सम्बोधनं- हे चित्रकराक्षरसौख्य !; हे विदार !- विगता दारा यस्मात् स विदारस्तस्य सम्बोधनं हे विदार !; मम कर्माणि विदारयछित्त्वा दूरीकुरु; हे विष्टपमुख्य !- विष्टपे - विश्वे - त्रिभुवने, मुख्य:प्रकृष्टः-प्रधानो-विष्टपमुख्यस्तस्य सम्बोधनं- हे विष्टपमुख्य ! ||४||
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अनुसन्धान- ७१
विलसत्सत्प्रणिधान !, निधानसमाक्षरदान ! | नतसुरनरसमुदाय !, मुदाय ! सदागतमान ! ॥ श्रीजिनपार्श्वनिशाकर !, साकरवचनविचार ! | ज्ञानं धर्मनिधे ! हि, निधेहि मयि स्फुटसार ॥५ ॥ इति श्रीपार्श्वजिनस्तवनम् ॥

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