Book Title: Anusandhan 2014 12 SrNo 65 Author(s): Shilchandrasuri Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad View full book textPage 7
________________ 14 वर्णव्यो छे. ते पछीनो 'छप्पय' पुन: चारणी शैलीनो जोवा मळे छे. छे. तेमां पण 'सारसी' छन्दमा करेलं गिरनारनुं वर्णन, कोई कुशल चारण-कविए रचेला छन्दनुं भान करावे छे. आ प्रकारनी रचना सामान्यत: चारण कविने वधु सुलभ गणाय. वळी, आ छन्दनी छेल्ली कडीमां प्रयुक्त 'भणे भोज' ए प्रयोग बहु सूचक गणवो पडे तेवो छ, पत्रकर्ता तो 'सत्यसागर' छे, छतां 'भणे भोज' केम ? स्पष्टतः स्वीकारवु पडे के आ छन्द कवि भोजनी रचना छ, ने ते पत्रलेखके उपयोगमा लीधी छे. 'भोज' नाम सम्भवतः चारण कविनु होवू जोईए, अलबत्त, आ एक अटकळमात्र छे. बाकी छन्दमां जे रीते नेमिनाथनुं तथा तेमनी समक्ष थतां पूजा-नृत्यादिनुं वर्णन छे, ते जोतां 'भोज' पद 'भोजविजय' के 'भोजसागर' नाम धरावता जैनमुनि-कवितुं सूचक पण होई शके, अने 'भोजसागर' नामे ग्रन्थकार मुनि १८मा शतकमां थया तो छे ज. अस्तु. राधनपुरना वर्णनमां दूहा ६मा 'राज्य करे राजा तिहां' एम पद छे. अहीं 'नवाब' के 'सूबो' एवो शब्द न प्रयोजतां 'राजा' शब्द प्रयोज्यो छे, अने तेने रामचन्द्रना अवतार जेवो गणाव्यो छे. 'वंशविहारी' ए विशेष नाम होय तो तो राजा हिन्दू होवार्नु स्पष्ट छे. पण जो 'रामचन्द्रना वंशमां विहरनारो' एवो अर्थ तारवीए तो, ते विशेष नाम नथी बनतुं; जोके ते हिन्दू होवानो संकेत तो तेनाथी पण सांपडे छे. आ, छन्नु दूहा परथी उपसती छाप छे. आठमो दूहो वांचतां द्विधा सरजाय छे. तेमां 'गाजीखान' एवा नामना मीरनो स्पष्ट उल्लेख छे, अने तेने सुलतान मान आपे छे तेवो पण निर्देश छे. राधनपुरमा मुस्लिम शासको हता ते इतिहासप्रसिद्ध छे. समाधान एम थाय के कविसमय प्रमाणे जे पण शासक राजा होय ते रामनो ज वंशज गणाय; एटले शासक मुस्लिम होवा छतां ते राजा राम जेवो होवान, हिन्दू रूढि प्रमाणे, कवि वर्णवे तो तेनो इन्कार न थई शके. एटले त्यां गाजीखान नवाब होय तो ते बनवाजोग छे. गुरुनु वर्णन विस्तारथी थयुं छे. ते ढाळो के तेनी कडीओ अन्यान्य पत्रोमां जरूर मळी आवे. केमके आवां वर्णनो ते सर्वसाधारण सम्पदा होय छे, पण अहीं, ते प्रसंगमां, भुजङ्गी छन्दमां अने चारणी लढणमां जे छन्द रचायो छे, ते एक विलक्षण रचना जणाय छे, रसप्रद छे ए. तो तेनी पछी तरतमां सं. अष्टकनी विविध छन्दोमय रचना पण बहु मजानी छे. मारवाडना राजा विजयसिंघना वर्णनमां तेने 'हिन्दुपतपादशाह' (दूहा ९) आ पत्र 'सादडी' - संघना विज्ञप्तिपत्रस्वरूप छे, अने पं. मोहनविजये तेनी काव्यरचना करी छे. आ मोहनविजय, 'लटकाळा' मोहनविजय करतां जुदा - पूर्वकालीन जणाय छे. प्रारम्भनां विशेषणो तथा दहा/पद्यो सर्वसामान्य छे. विशेषणो राख्यां नथी. सादडी-वर्णननी ढाळमां - सादडी ते गोडवाडर्नु प्रख्यात शहेर; अहीं चिन्तामणि, शामळा, अमीझरा एम त्रण पार्श्वनाथनां चैत्यो उपरांत डाबी तरफ गोडी पार्श्वनी देरी, नजीकमां राणकपुर तीर्थ होवानुं वृत्तान्तनिवेदन - ऐतिहासिक विगतो पूरी पाडे छे. 'राणकपुर' ए ऐतिहासिक अने वास्तविक नाम छे. राणाजीए वसावेलु पुर ते राणकपुर, वर्तमानमां तेने भारत सरकारे 'रणकपुर' करी मूक्युं छे. पोस्टखाताए प्रगट करेली आ स्थापत्यनी टपालटिकिट पर पण 'रणकपुर' ज छापवामां आव्यु छे. साइन बोर्डो पर पण घणीवार आq ज जोवा मळे छे. आनुं कारण अंग्रेजी भाषानी अणसमज छे. अंग्रेजी मां RANAKPUR एम लखाय, तेनुं हिन्दीमा रूपान्तर करनारा कारकूनो के अधिकारीओ तेने आम वांचे - रणकपुर. केमके जो RA नुं 'रा' करीए तो NA नुं पण 'णा' केम न करवू? आथी तेमणे 'रा' ने बदले 'र' करी मूक्यु. विश्वभरमां आवा पुरातन, ऐतिहासिक, कलाधामनुं नाम बगाडवानुं श्रेय, आ रीते, भारत सरकारने फाळे जाय छे. अस्तु. गुरुने सादडी पधारवानी विनंति घणी भावनापूर्वक करवामां आवी छे, तेमां, महावीरजी तीर्थ (मूछाळा महावीर), राणकपुर (आदिनाथ), वरकाणा (पार्श्वनाथ), नडूलाई (नेमनाथ), नाडूल (पद्मप्रभु)-आ पांच क्षेत्ररूप पंचतीर्थीनी यात्रानो लाभ लेवा माटे पण आ तरफ पधारो तेवू निवेदन पण इतिहासनी केटलीक विगतो आपनाएं बन्युं छे. मारवाडने मरुस्थली कहेवाय छे, पण अहीं संघ गुरुने कहे छे के अमारो हरियाळो - सोहामणो देश मूकीने तमे 'मरुस्थली' (मुरस्थली)मां केम मोही पड्या छो? एम जणाय छे के भीनमाल तथा सादडी बन्ने मारवाडनां क्षेत्रो होवा छतां, सादडीनी तुलनामां भीनमाल वधु शुष्क प्रदेश, ते समयमां हशे. अथवा भावनाना पूरमा तणातो माणस आवां निवेदन अवश्य करी शके छे.Page Navigation
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