Book Title: Anusandhan 2014 12 SrNo 65 Author(s): Shilchandrasuri Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad View full book textPage 6
________________ 'करहेडा' तो राजस्थानमां आवेलुं तीर्थ छे ! कदाच गुरु राजस्थान बाजुथी दक्षिणमां आव्या होय, ए सन्दर्भमां कविए नाम उल्लेख्यु होय ! ए ज रीते 'कलिकुण्ड' ए पार्श्वनाथर्नु तीर्थ हतुं, अने लोकवायका प्रमाणे ते दक्षिण भारतमा केरल प्रदेशमां (घणा भागे कालिकट) होवानुं मनाय छे. त्यां सुधी गच्छपति गया होय तेवू आ उल्लेख परथी मानी शकाय, अन्तरीक्ष तो आकोला पासे शिरपुरमांनुं प्राचीन तीर्थ. तो कुलपाक ते आन्ध्र प्रदेश- पुरातन जैन तीर्थ. गुरुनी विहारयात्रानो व्याप केटलो विस्तरेलो हशे ते आनाथी समजी शकाय छे. आ पत्रनी हाथपोथीमांत्रण पानां छे. दरेक पत्रनी बन्ने बाजए रिक्त लिपिमा सुन्दर अक्षर-लेखन लेखक द्वारा थयुं छे, ए अक्षरो आम वंचाय छ : "श्राविका लाडकंअरिपठनकृते" दरेक पृष्ठमां बे-बे अने त्रीजा पत्रना प्रथम पृष्ठमां ३ (पठन) अक्षरो छे. पत्र कर्ताना हस्ताक्षरनो ज जणाय छे. बीजापुरना संघ तरफथी विनंतिरूपे आ पत्र लखायेल छे. वीजापुर ते हालना कर्णाटकनुं बीजापुर. छे. 'अमृतध्वनि' वांचता 'त्रिभङ्गी' याद आवे: एक रीते ओ त्रिभङ्गीना गोत्रनो छन्द छे एम कही शकाय. पत्रना गद्यांशमां एक ऐतिहासिक हकीकत ए मळे छे के सोझतमां तपगच्छना रूपविजय चोमासु हता त्यारे, त्यां खरतरगच्छना पण कोईक साधु हशे. पर्युषण बाद चैत्यपरिपाटी (बधां जिनमन्दिरोनी परिक्रमा) काढवानी वेळाए, पहेली कोनी नीकळे ते मुद्दे बेउ गच्छोमां मोटो विवाद थयो हशे, तो वात राजदरबारे गई. रूपविजयजी आदिए दीवान पर पत्र पाठव्यो के पहेली तपगच्छनी ज होय, राजा सुधी वात जतां तेणे पहेलां मौखिक अने पछी लेखित आज्ञा करी के तपगच्छनी ज पहेली काढवी. ते प्रमाणे ज थयु. आ प्रसंगथी सोझतनो संघ पाटनो (गुरुनो-गुरुगादीनो) भक्त छ तेम पुरवार करीने श्रीपूज्यजीने सोझत पधारवानी विनंति करवामां आवी छे. बन्ने स्थळे विद्यमान मुनिगणनां नामो नोंधपात्र छे. गुरु सूरतमा नाणावटवडाचौटे बिराजमान हशे तेवो संकेत, पत्रलेखक, पत्रना छेडे, जगवल्लभ (पार्श्वनाथ)नां दर्शन करतां याद करवानी विनंति करे छे ते परथी मळी शके छे. 'जगवल्लभ'नुं देरासर प्राचीन छे, अने आजे पण नाणावटमा विद्यमान छे. आ पत्रना लेखक कवि रूपविजयजी नीवडेल कवि-साधु होवा- प्रमाण आ पत्र थकी सांपडे छे. देशी ढाळो, तेमां पण 'अमृतध्वनि' प्रकारनी छन्दोलालित्य धरावती ढाळ प्रयोजीने तेमणे पोतानुं काव्यचातुर्य पुरवार करी आप्यु छे. प्रारम्भनां सं.प्रा. काव्यो तथा दूहा महदंशे सर्वसाधारण प्रकारनी रचना छे. जोके तेमां पण कविना रचेला नवा दूहा छे खरा. "हे सखी' शब्दने ध्रुवपद बनावीने रचायेली पहेली ढाळ केटली बधी रसाळ छे तेनो अंदाज तो तेने तेना देशी लयमा गावामां आवे त्यारे ज मळे ! गुरु दयासूरि, तेमना गुरु क्षमासूरि; पिता अमरा(शाह), माता अनोपदे, गोत्र सुराणा; आटलो परिचय आमां मळे छे. वतननो निर्देश नथी. गुरुने सूरिपद मंगलपुर (मांगरोळ)मां मळ्युं होवार्नु ढाळ २, क. ६मां नोंधायुं छे. सोझित-सोझत (राजस्थान)थी, सूरत बिराजता गुरुने लखायेल आ पत्रनो हेत. सोझत पधारवानी विनंतिनो छे. 'स्वाध्याय'रूप बीजी ढाळ पूरी थतां ज 'अमृतध्वनि'नी ढाळ आरंभाय छे. बे दूहा बेवडाता होई एकवार काढी नाखेल आ नानकडो विज्ञप्तिपत्र काव्यचमत्कृतिनी दृष्टिए सामान्य गणाय तेवो पत्र छे. आमां विशेष कोई नोंधपात्र वातो पण नथी. मारवाडना सेवांणचिसिवांची तरीके जाणीता परगणाना बाल्होतरा गामे विराजता गुरु पर सूरतथी लखायेलो आ पत्र छे. (८) आपणे जेने 'मेडता' तरीके जाणीए छीए. ते 'मेदिनीपुर'ना नामे ओळखातुं हतं. तेवी माहिती, आ पत्र थकी आपणने सांपडे छे. आ पत्रना केटलाक अंशो अन्य पत्रोमां पण लखायेला जोवा मळे छे, ते परथी, आवा वर्णनात्मक काव्यखण्डो सर्वसाधारण जणस हशे, अने तेनो उपयोग कोई पण करी शकतुं हशे, एम जणाई आवे छे. शत्रुञ्जय अने गिरनार तीर्थनी स्तवना धरावती ढाळो, आ पत्रनी विशेषताPage Navigation
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