Book Title: Anusandhan 2014 12 SrNo 65
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 13
________________ उल्लेख कवि चूक्या विना करे छे. १०मा छन्दमा 'वीर विवेकं, रूपके टेक' ए वाक्य 'वीरना उपाश्रय' तथा 'रूप विजयना डहेलाना उपाश्रय' परत्वे होय तेम लागे छे. तेनी सामे ज अष्टापद जिनालय छे ! ११मा छन्दमां हरकुंवर शेठाणीए करावेल ऋषभदेव प्रासाद-तेनी प्रतिष्ठा देवेन्द्रसूरिए करी तेवो उल्लेख छे ते हालना मूलेवा पार्श्वनाथ जिनालय माटेनो जणाय छे. झवेरी महोल ते झवेरीवाड; नागोरी सराय - जेमां गच्छपति हाल - ते वखते चोमासुं रह्या छे ते. शेठ मगनभाई, वाडीभाई, जीवाभाई, ठाकरशी, माणेकचंद, उमाभाई, पानाचंद, गोकळशी - बधा ते समयना अग्रणी श्रावको जणाय छे. मरुधरनु अने जोधपुरनुं वर्णन लगभग अन्य पत्रो जेवू ज छे. (२१) तपगच्छना 'सौभाग्यलक्ष्मी' तरीके जाणीता विजयलक्ष्मीसूरि, तेमना पट्टधर देवेन्द्रसूरिनी पाटे गच्छपति श्रीपूज्य महेन्द्रसूरि आव्या छे. सं. १८६३मां तेओ 'साणंद' चोमासुं हशे, तेमना पर सीणोरथी लखायेल आ पत्र छे. सीणोरने 'सेनापुर' नामे कवि ओळखावे छे. हाल ते सिनोर-शिनोरना नामे जाणीतुं छे. नगरवर्णनमां 'गजल' लखवानी आ पत्रलेखकोनी प्रथा रही होवानुं जणाय छे. ते हिन्दीमां लखाय, प्रत्येक पंक्तिने छेडे 'क्' (बंकाक्, डंकाक्) अनिवार्य, एम लागे. आq होय तो ज 'गजल' बनती हशे.. साणंदमां मीठालाल देसाई कारभारी छे, तो शिवलाल व्यवहारीनुं भारे मान छे. साणंदर्नु विस्तृत वर्णन त्यांना महोल्ला-पोळ-फळियानी तेमज विविध ज्ञाति/धर्मना लोकोनी विगतो पूरी पाडे छे. विविध देवस्थानोनी पण स्पष्ट माहिती आपे छे. जोके आ प्रकारनुं माहितीप्रचुर वर्णन लगभग तमाम पत्रोमां जोवा मळे छे, जे बहु रसप्रद होय छे. कोई अभ्यासी आ मुद्दाने अभ्यासनो विषय बनावी काम करे तो सरस संशोधन थाय. साणंद जेवू ज वर्णन सिणोरनुं पण छे, पण ते ढाळबंधमां अने गुजराती भाषामां छे. सं. पद्यो तद्दन अशुद्ध-अपूर्ण. १५-१६-१७ दूहाओमा पुण्यथी प्राप्त थतां पांच रत्नोनी वात छे, ते बघां स्पष्ट समजातां नथी. राजिस मकुयाणा' ते कोई राजकर्ता व्यक्तिनुं नाम हशे? मकुयाणा-मकवाणा - एम हशे? दूहा ११मां 'वढीहार' देशनी वात कवि कया आशयथी करे छे ते समजमां आवतुं नथी. सूरत के राजनगरने वढियार साथे कशी लेवादेवा तो नथी. कविए प्रयोजेला शब्दो पण अस्पष्ट होय छे : जथाखि (जथा रवि?), झीणाणंद, उल्लाद (आह्लाद?), पितृप्रशन, राजिस, अने अन्य पण घणा, जेनो अर्थ पामवो विकट छे. ब्रह्मचर्यव्रतने कवि 'भ्रमव्रत' तरीके ओळखावे, त्यारे वाचकने भ्रम न थाय तो ज नवाई ! गद्य विभागमा केटलीक प्रासङ्गिक विगतो मळे छे : पर्युषणमां कोणे कयु तप कर्य, धनव्यय द्वारा कयो लाभ कोणे लीधो; ते वर्षे पोताना गच्छमां १ श्राविकाए मासक्षमण कयु अने समग्र शहेरमा ३२ मासक्षमण तथा ५८ सोळभक्त थयां, इत्यादि माहिती रसप्रद छे. ए वर्षे वरसाद घणो पडेलो ने पोताना उपाश्रयमां थांभलानी कुंभी डूबी जाय तेवू पाणी आव्युं तेवो उल्लेख पण छे. तो ते उपाश्रयनी अगाशीमां खोड आवतां तेनुं समारकाम करवानी आर्थिक ताकात न होवानुं निवेदन केटलुं करुण लागे ! साधु-शिष्यनी वृद्धि अंगे चालती चर्चा-विचारणाना सन्दर्भे कोई एक भाईने अंगे नोंधेली वात प्रमाणे, "ए भाई पं. हेमरत्ननो शिष्य थवानो होवा छतां तमे (गच्छपति) तेने 'उत्तरभेद करीने' लो ते योग्य छ" - आ मतलबर्नु लखाण, ते गच्छनी आन्तरिक स्थिति परत्वे प्रकाश पाथरी जाय छे. एक पं. नयरत्न नामे मुनिए उचित व्यवहार न जाळव्या विषे फरियाद पण पत्रमा छे. ते साधुनो क्रोध तीव्र हशे अने लांबा समयथी ते यथावत् हशे, तेथी तेना क्रोधने अनन्तानुबन्धिया क्रोधलेखे लेखके वर्णव्यो छे, ने ते साधुने शिखामण आपवा गच्छपतिने टकोर्या छे. 'मीये पण मासखमण ३ थया छि' आ वाक्यमां मीया एटले मीयागाम. ते उपरांत खेडा, धोलका, साणंद वगेरे क्षेत्रोनो पण उल्लेख थयो छे. (२२) आ पत्र तपगच्छनी 'रत्न' शाखाना गच्छनायक दानरत्नसूरि पर लखायेलो छे. लखनार साधु कनकरत्ननी काव्यक्षमता मध्यम के सामान्य कक्षानी जणाय.

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