Book Title: Anusandhan 2014 12 SrNo 65
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
View full book text
________________
अमे अहीं पधारवानी वात/विनंति करीए छीए. पण ते वात मन पर तमे लेतां ज नथी ! अमने गुरुमुखे प्रभु वीरनी वाणी सांभळवानो उत्कट भाव छे, पण तमारा वगर ते कोण संभळावे? एटले अमारे तो वाणीनो विरह! ते पण तमारा लीधे ! आ दुःख क्षणे क्षणे कनडे छे. हवे तो एटलुंज कहीए छीए के तमारे अमारी जरूर छे के नहि - ते नक्की करजो. जो अमारो खप होय तो वहेलासर आ तरफ - खंभनयर-खंभात पधारो !"
भावनानी आवी उत्कटता साथे आटली बळकट अभिव्यक्ति अन्यत्र भाग्ये ज जोवा मळी छे, अने ते दृष्टिए आ पत्र महत्त्वनो जणाय छे. वळी, विवेक पण केवो ! १३मी कडीमां 'लघु भारी असमंजस' - अर्थात् अविनयथी प्रेराईने ओछु के वधु पडतुं जे असमंजस वेण लख्यु, ते खमजो! अमारे तो साचा स्वजन तमे-गुरु ज छो; बीजा कोने अमे कहीए? - आ विवेक हृदयस्पर्शी बने छे.
पत्रलेखक खुशाल मुनि छे. गुरुनी पाट परम्परानो निर्देश तेमणे मजानो कों छे:
"समर-राय-विमल-जया-विजै-विनचंद पटोधारी रे,
श्रीअखयचंदसूरीसरु, धरमतणा दातारी रे"
अर्थात् - समरचन्द्रसूरि-रायचन्द्रसूरि-विमलचन्द्रसूरि-जयचन्द्रसूरिविजयचन्द्रसूरि-विनयचन्द्रसूरि- तेमना पट्टधर अक्षयचन्द्रसूरि.
वांचन अने समजणनी भूलने कारणे 'समरराय-पिता, विमलजया-माता, विजयविनयचन्द्रसूरि-गुरु' - आम पण थई शके. पण ते बराबर नहि. पत्रना छेडे के क्यांय वर्षनो उल्लेख नथी.
(२६) लोंकागच्छ-सम्बन्धित आ पत्र व्रजमिश्रित हिन्दीमां छ; अजमेरथी बीकानेर लखायो होई मारवाडीनी छांट होय ते सहज गणाय. कुण्डलिया छन्दमां दूहाछन्दनो समन्वय, तेमां दूहानी चोथी पंक्ति ज कुण्डलियानी प्रथम पंक्तिरूपे आवर्तित थाय छे. दूहा, कवित्त, कुण्डलिया - बधा छन्दो गुरुवर्णन-परक ज छे.
(२७) आ पत्र सचित्र होय तेवी सम्भावना छे, अने जो होय तो तेनां चित्रो शीघ्र
प्रकाशित थवां घटे, केमके तेमां महाराष्ट्री चित्रशैलीनी छाप हशे, जे दुर्लभ गणाय. पत्रमा रिक्तलिपिनां सुशोभनो तेमज बन्ने तरफ फूलवेलनी भात (Border) पण रमणीय लागे छे.
आ पत्र महाराष्ट्रना नवरङ्गाबादथी लखायो छे. तपगच्छनी एक शाखा सागरगच्छ, तेना गच्छपति लक्ष्मीसागरसूरिना शिष्य कल्याणसागरसूरि उपर, नवरङ्गाबाद संघना नामे जयसौभाग्य उपाध्याये लखेलो आ विनतिपत्र छे. आमां, अन्य पत्रोमां होय तेवां अमुक पद्योने बाद करतां, आखी पत्र-रचना नवतर, अन्य तमाम पत्रो करतां वधु ताजी गणी शकीए तेवी छे. अमदावाद-गौर्जरदेशमा रहेला आचार्यने नवरङ्गाबाद पधारवानी विनति आ पत्र द्वारा थई छे.
आमां एक ज ढाळमां गुंथी लेवायेलां श्रावक-नामोमा धामी' तथा 'नीमा ज्ञाति'ना उल्लेख नोंधपात्र छे. नामो स्पष्टतया श्रावको गुजराती होवानुं सूचवे छे. 'शेषपुरा'ना शाह 'नाहना', 'सोझिंतरा'ना 'अमाइदास भूलाभाई' आ नामोथी ते धारणा दृढ बने छे.
त्यांना देरासरमां (के देरासरोमां) ऋषभदेव, शान्तिनाथ, नेमिनाथ, पार्श्वनाथ बिराजमान हशे तेम पण एक उल्लेखथी समजाय छे. नवरङ्गाबादमां पधारेला मुनिगणनां तेमज गुरु साथे वर्तता मुनिगणनां नामो ऐतिहासिक रीते उपयुक्त गणाय.
दरेक पखवाडियानी पाखी-चौदशने दिवसे पौषध-उपवास विपुल संख्यामा थतां हशे, तेनां पारणां विविध गृहस्थो तरफथी कराववामां आवतां होय, तेवी विगत रसप्रद छे, पर्युषणना जमणवारोने अंगे पण तेवी ज विगत छे.
'कर्णपरा' त्यांन परु होवानुं लागे छे. त्या पार्श्वनाथ-जिनालय छे. पछीथी गोडीजी पार्श्वनाथनो निर्देश पण छे, ते त्यांना होय तेनी स्पष्टता नथी थती.
अन्तभागे मराठी भाषामां पार्श्वनाथनुं लघु स्तवन पण रसप्रद रचना छे, तेमां पार्श्वनाथने 'पासूबाबा' तरीके ओळखावेल छे.
पत्र अपूर्ण नथी; पूर्ण ज छे. छेल्ले 'ताम्बूल'ना वर्णननो श्लोक, पत्रलेखक कल्पनाशील कवि होवानुं सूचवी जाय छे.

Page Navigation
1 ... 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 ... 360