Book Title: Anubhav Panchvinshtika Granth
Author(s): Buddhisagar
Publisher: Adhyatma Gyan Prasarak Mandal

View full book text
Previous | Next

Page 10
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अथ अनुभव पञ्चविंशतिग्रन्थः प्रारंभ त्रेवीसमा श्री पार्श्वनाथ, संखेश्वर सुखकार; तेहतणा चरणे नमी, वळी सद्गुरु हितकार ? प्रणमी भगवती सरस्वती, जिनवाणी जयकारः । अनुभव पच्चीशी रचुं, जेथी शिवसुखसार. २ दुहा. उत्तम धर्मथकी सुणो । एवी जिनवर वाण ।। धर्म धर्म जग सौ करे । सत्यधर्म जिमआण. ॥१॥ भावार्थ-उत्तम पुरुषो धर्माराधनथी जाणवा, पण संसारमा राची माची रहे, गाडी घोडा उपर बेसे तेने उत्तम कहेबा ते बाळ जीवोनुं लक्षण छे. का छे के ___ श्लोक. नधम्मकजा परमथ्थिकइझं। न पाणिहिंसा परमं अकजं ॥ न पेमरागा परमथ्थि बंधो । न बोहिलाभा परमथ्यि लाभो ॥१॥ For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 ... 249