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अंत:करण का स्वरूप
अंत:करण का स्वरूप
प्रश्नकर्ता : तो आनंद की व्याख्या क्या होगी?
दादाश्री : जगत का जो सत्य है वह सत् नहीं है। व्यवहार में चलता है, वह सत्य लौकिक है। वास्तविकता अलौकिक चीज़ है। लौकिक में वास्तविकता नहीं है। वास्तविकता, सत् है, वह सत्य नहीं है। सत् किसे कहा जाता है कि जो चीज़ निरंतर होती है, नित्य होती है, उसे सत कहा जाता है। अनित्य को सत्य बोला जाता है। जगत का सत्य, असत्य सापेक्ष है। आपको जो सत्य लगता है, दूसरों को वह असत्य लगता है और जो सत् है वह कभी बदलता ही नहीं। सत् यानी पर्मनेन्ट! चित् यानी ज्ञान-दर्शन। ज्ञान-दर्शन एक करे, तो चित्त बोला जाता है। पर्मनेन्ट ज्ञान-दर्शन हो गया तो उसका फल क्या? आनंद ! पर्मनेन्ट ज्ञान-दर्शन को क्या बोलते हैं? केवल (एब्सोल्यूट) ज्ञान-दर्शन!
बुद्धि का विज्ञान दादाश्री : आपको बुद्धि है? प्रश्नकर्ता : एकदम थोड़ी।
दादाश्री : बुद्धि ज्यादा नहीं है तो आप काम कैसे करते हैं? बिना बद्धि के तो कोई काम ही नहीं कर सकता। बुद्धि, यह संसार चलाने के लिए प्रकाश है। संसार में वह डिसिजन (निर्णय) लेने के लिए है। बुद्धि है तो डिसिज़न ले सकते हैं। आप कैसे डिसिजन लेते हैं?
प्रश्नकर्ता : जितनी थोड़ी बुद्धि से काम होता है, उससे चला लेता हूँ।
दादाश्री : आपके वहाँ ज़्यादा बुद्धिवाला कोई है?
प्रश्नकर्ता : दुनिया में बहुत हो सकते हैं । वे कौन हैं, वह मुझे मालूम नहीं है।
दादाश्री : जिसे बिल्कुल बुद्धि नहीं है, ऐसा कोई देखा है?
प्रश्नकर्ता : बिल्कुल बुद्धि न हो ऐसा तो कोई नहीं देखा है। क्योंकि जितने भी प्राणी है, उन्हें भी उनके ग्रेड (कक्षा) अनुसार थोड़ी भी तो बुद्धि रहती ही है।
दादाश्री : हमारे में बुद्धि बिल्कुल नहीं है। हम अबुध हैं।
प्रश्नकर्ता : हाँ, यह सच बात है, ऐसे हो सकता है जब अबुध की लिमिट (सीमा) तक पहुँच गया, तो वह आदमी स्वयं बुद्ध हो जाता है।
दादाश्री: हाँ, स्वयंबुद्ध हो जाता है। अबुध हो जाये फिर ज्ञान प्रकाश हो जाता है। जहाँ तक बुद्धि है वहाँ तक एक परसेन्ट (प्रतिशत) भी ज्ञान होता ही नहीं। ज्ञान है वहाँ बुद्धि नहीं है। हमें जब ज्ञान हो गया, फिर बुद्धि बिल्कुल खत्म हो गई।
तुमको बहुत बुद्धि है तो तुम्हारी पत्नी के हाथ में से पैसा रस्ते में गिर जाये, तुम पीछे चलते हो और पैसा गिरते देखा तो तुम इमोशनल (भावमय) हो जाओगे। यह बुद्धि इमोशनल कराती है। जब तक अहंकार है तब तक बुद्धि है। हमें बुद्धि नहीं है, ऐसा सिर्फ बोलने से चलता है?
प्रश्नकर्ता : ज्यादा बुद्धि नहीं, थोड़ी बुद्धि है।
दादाश्री : थोड़ी बुद्धि (लगती है) वही ज्यादा बुद्धि है। इस काल में सम्यक् बुद्धि कम है और विपरीत बुद्धि ज्यादा है। सारे जगत के छोटे बच्चे को भी बुद्धि है। किसी का पैसा रस्ते में गिरा हो तो ले लेता है, वह क्या बुद्धि नहीं है? वह सब विपरीत बुद्धि है। सम्यक् बुद्धि तो, हमारे पास बैठने से हो सकती है।
एक आदमी हमें पूछता था कि, 'जगत में दूसरों के पास ज्ञान नहीं है? आपके पास ही है?' तो हमने कहा कि, 'नहीं, जिसके भी पास ज्ञान है, वह सब्जेक्ट (विषय) ज्ञान है, वह बुद्धि का ज्ञान है।